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BANDHETIYA OFFICIAL
कलम कला है,कलई भी खुल जाती है। सर कलम मौत हो, हो जीवन पेड़ कलम कटा, मरण -जनम की थाती है, कलई भी खुल जाती है। प्रमाण पत्र जनम का, प्रमाण पत्र मरण का, मृत्यु का जीवन का, कुंडली भी कुछ पाती है। सृजन किसे भाये, कौन दुश्मन, ये भी कलम की हस्ती यकीनन, सर, धड़, जड़, पकड़ ले धड़कन, जकड़ ले यम अकाल भी, अकाल मृत्यु आती हैं। ©BANDHETIYA OFFICIAL #कलम #कला है।
#कलम #कला है। #मोटिवेशनल
read moreमिहिर
White झूठ है हार जाना जीत जाना ईर्ष्या और घृणा करना पूंजीवादी और धार्मिक होना हिंसक और उग्र होना और सब से बड़ा झूठ बड़ा और सफल आदमी बनना तो सच है क्या !! प्रेम करना करुणा रखना प्रकृति को जानना प्रकृति जैसा होना अहिंसा को चुनना और सच है आदमी बनना आदमी बने रहने की कोशिश करना ©मिहिर #सच है क्या
Shishpal Chauhan
अ इंसान - रोता हुआ आया था रुलाते हुए जाएगा, क्या साथ लेकर आया था जो अब तू लेकर जाएगा। संपति घर बार सब यहीं छूट जाएगा, कोई न तेरा साथ निभाएगा । माना कि जवानी के दम पर कुछ दिन खुशी मनाएगा, परंतु एक दिन चेहरा मुरझा जाएगा। कर स्वयं से वादा दिल न किसी का दुखाएगा, गहराते हुए दुखों में भी चेहरे पर मुस्कान दिखाएगा। मत बोलिए कड़वे बोल जिससे दूसरा आहत हो जाएगा, पल भर की जिंदगी आज यहां है पता नहीं कल देख पाएगा। कर ले ईश्वर से बंदगी बस आखिर वही काम आएगा, कर ले अच्छे कर्म एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। कहे चौहान सब धरा यहीं रह जाएगा, राम नाम है सुखदाई जीवन संवर जाएगा। ©Shishpal Chauhan # जीवन क्या है
# जीवन क्या है #कविता
read moremalay_28
White कहाँ हो तुम कहाँ मैं हूँ हमारे दरमियाँ क्या है दिलों के बीच फ़ैली ये सनम सरगर्मियाँ क्या है. ©malay_28 #दरमियाँ क्या है
Adesh K Arjun
"मनुष्य ने चूहों से धन छुपाने की कला तो सीखी, परन्तु हाथी जैसे विशाल काय गणेश का भार उठा पाने की कला नहीं सीख सका. ©Adesh K Arjun कला
कला #Quotes
read moreKUNWA SAY
White दिल का दर्द छुपाने की कला बस एक है, रूख जाते हैं आँसु, उस वक़्त बिताने की कला बस एक है। ©KUNWA SAY #nightthoughts दिल का दर्द छुपाने की कला बस एक है, रूख जाते हैं आँसु, वक़्त बिताने की कला बस एक है।
#nightthoughts दिल का दर्द छुपाने की कला बस एक है, रूख जाते हैं आँसु, वक़्त बिताने की कला बस एक है।
read moreManish Raaj
कला ------ बहते आंसुओं को दरकिनार कर सब्र के साथ आगे बढ़ जाने की कला हर किसी को नहीं आती वाक़िफ-ए-तकलीफ़ से गुज़र क़ाबिल-ए-तारीफ़ से आगे निकल जाने की कला हर किसी को नहीं आती बंजर ज़मीं से हो कर लहलहाते खेतों बीच घरौंदा बनाने से ऊपर उठ जाने की कला हर किसी को नहीं आती मकां और मुक़ाम के सफ़र से हो कर किसी के दिल में पनाह पाने और रूह का सुकूं हो जाने की कला हर किसी को नहीं आती बेइमानों की बस्ती से हो कर ईमानदारों की महफ़िल से आगे बढ़ जाने की कला हर किसी को नहीं आती गरीबी से गुज़र अमीरों से आगे निकल जाने की कला हर किसी को नहीं आती जज़्बात की गिरफ्त से निकल जज़्बे को मिसाल बनाने की कला हर किसी को नहीं आती कल के सपनों को पिछे छोड़ अपने आज के आधार को आकार और धार देने की कला हर किसी को नहीं आती कविः मनीष राज ©Manish Raaj #कला