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Nikhat
सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। ©. #रश्मिरथी – तृतीय सर्ग
Shree
उन्मुक्त मृगतृष्णा से, निर्मल चित्त लिए नयन ठसाठस स्नेह अविराम से, पसार आंचल नित अनुनय करें, हृदय संधि रखें स्वप्नों के प्रत्युत्तर को अभिज्ञ अवनि अनन्या बैठ वहीं निहारे एकटक अब अंबर को, समरस हो प्रश्न अभिव्यक्ति करें, प्रखर संवाद करें रश्मिरथी से। .....शुभ प्रभात.... 🌼🌼🌼🌼🌼 उन्मुक्त मृगतृष्णा से, निर्मल चित्त लिए नयन ठसाठस स्नेह अविराम से, पसार आंचल नित अनुनय करें,
Insprational Qoute
काव्यसंरचना गद्यांश:-२ शीर्षक:-साहित्य समाज का दर्पण ******************************** सर्वप्राचीन समूल सभ्यता जो आज सुलभ्य बनी ऐसा साहित्य का समर्पण है, मनुष्य की सफलता व दुर्लभता का सार कहे ऐसा साहित्य समाज का दर्पण है। सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े😊 काव्यसंरचना गद्यांश:-२ शीर्षक:-साहित्य समाज का दर्पण ******************************** सर्वप्राचीन समूल सभ्यता जो आज सुलभ्य बनी ऐसा साहित्य
Insprational Qoute
रचना:-3 विधा:- कविता विषय:-पत्नी ********************* सम्पूर्ण कविता अनुशीर्षक में पढ़ियेगा रचना:-3 विधा:- कविता विषय:-पत्नी ********************* सुंदर-सुशील-सर्वगुणसम्पन्न-सहनशीलता से परिपूर्ण मैं पत्नी हूँ, नदी-निर्मल-निर्झरिणी