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Neeraj
मेरी अपनी है मंज़िल मेरी अपनी दौड़ ऐ राह भटके मुसाफिर सब दुनियादारी छोड़ जा पाले अपनी मंज़िल लगा दे पूरा ज़ोर मेरी अपनी है मंज़िल मेरी अपनी दौड़ ©Neeraj #kavita #motivate 'अपनी मंज़िल अपनी दौड़'
नवनीत ठाकुर
अंजाम की फ़िक्र तो उन्हें, जो अरमान पाले हो, हमें तो मतलब बस तुझे चाहने भर से। मंज़िलें मायने रखती हैं ख़्वाब देखने वालों को, हमने तो सफ़र चुना है तेरे नाम के साथ। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर लव शायरी हिंदी में अंजाम की फ़िक्र तो उन्हें, जो अरमान पाले हो, हमें तो मतलब बस तुझे चाहने भर से। मंज़िलें मायने रखती हैं ख़्वा
#नवनीतठाकुर लव शायरी हिंदी में अंजाम की फ़िक्र तो उन्हें, जो अरमान पाले हो, हमें तो मतलब बस तुझे चाहने भर से। मंज़िलें मायने रखती हैं ख़्वा
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मंज़िल न दे सके जो सुकूँ सफ़र को 'नवनीत', तो राह की गर्द से एक नई दास्ताँ लिख दीजिए। जहाँ तक भी चली हो मंज़िल की तलाश, उस रास्ते की हर धूल से अपनी आवाज़ कह दीजिए। ग़म और दर्द अगर न मिले राहत का निशाँ, तो हर एक क़दम से अपनी दुआ बना दीजिए। मंज़िल नहीं मिली तो क्या, सफ़र तो है, राहों की धूल से ही खुद को पहचान दीजिए। रोशनी मिलेगी अंधेरे के हर कोने से, वक़्त की चुप्प को अपनी हसरतों से सजा दीजिए। हमसफ़र नहीं तो क्या, इरादे हैं आसमान जैसे, हर घड़ी की राह को अपने ख्वाबों से बना दीजिए। कभी अगर ठोकरें लगे, तो उन्हें दिल से लगा लीजिए, वहीं छुपा है वो राज़, जो आपको मजबूत बना दीजिए। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर मंज़िल न दे सके जो सुकूँ सफ़र को 'नवनीत', तो राह की गर्द से एक नई दास्ताँ लिख दीजिए। जहाँ तक भी चली हो मंज़िल की तलाश, उस रास्
#नवनीतठाकुर मंज़िल न दे सके जो सुकूँ सफ़र को 'नवनीत', तो राह की गर्द से एक नई दास्ताँ लिख दीजिए। जहाँ तक भी चली हो मंज़िल की तलाश, उस रास्
read moreनवनीत ठाकुर
Unsplash दुनिया के रंगों से अब कोई सरोकार नहीं, कभी जो था कभी सस्ता, अब वो महँगा नहीं। गुज़र रहा हूँ बस इस राह से चुपचाप, जो मंज़िलों की तलाश में था, वो अब मेरा पीछा नहीं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर दुनिया के रंगों से अब कोई सरोकार नहीं, कभी जो था कभी सस्ता, अब वो महँगा नहीं। गुज़र रहा हूँ बस इस राह से चुपचाप, जो मंज़िलों की
#नवनीतठाकुर दुनिया के रंगों से अब कोई सरोकार नहीं, कभी जो था कभी सस्ता, अब वो महँगा नहीं। गुज़र रहा हूँ बस इस राह से चुपचाप, जो मंज़िलों की
read moreBhupendra Rawat
White दर बदर भटका हूँ तो मंज़िल को पाया है राह की ठोकरों ने मुझे चलना सिखाया है वो चिराग नहीं जो बुझ जाए हवा के झरोखो से मैंने स्वयं को आँधियों मे जलना सिखाया है ©Bhupendra Rawat दर बदर भटका हूँ तो मंज़िल को पाया है राह की ठोकरों ने मुझे चलना सिखाया है वो चिराग नहीं जो बुझ जाए हवा के झरोखो से मैंने स्वयं को आँधियों मे
दर बदर भटका हूँ तो मंज़िल को पाया है राह की ठोकरों ने मुझे चलना सिखाया है वो चिराग नहीं जो बुझ जाए हवा के झरोखो से मैंने स्वयं को आँधियों मे
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