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नवनीत ठाकुर
सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही, जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो। ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको, जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो। ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं, पर खुश रहने का तरीका है यही— जो कुछ भी है, उसे ही क़ीमत दो, कभी न किसी और की तलाश में खो। सपनों का पीछा करो, पर हकीकत को न भूलो, रात चाहे जैसी हो, दिन को उजाला बना लो। जो दिल कहे, वही करो, बस खुद से सच्चे रहो, वही सबसे बड़ा गुरुर करो। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही, जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो। ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको, जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो। ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं, पर खुश रहने का तरीका है यही—
#नवनीतठाकुर सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही, जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो। ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको, जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो। ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं, पर खुश रहने का तरीका है यही—
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न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज, भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए। दो वक्त की सिर्फ रोटी, या थोड़ा सा अनाज चाहिए। महल नहीं, एक छत काफी है, आराम नहीं, बस राहत काफी है। सुकून की तलाश में भटक रहा हूँ, खाली पेट को बस बरकत काफी है। न शानो-शौकत, न चाहत बड़ी, बस इंसान की भूख मिट जाए। जिंदगी की असली हकीकत यही, कि पेट भरे, तो सुकून आ जाए। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज, भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए। दो वक्त की सिर्फ रोटी, या थोड़ा सा अनाज चाहिए। महल नहीं, एक छत काफी है, आराम नहीं, बस राहत काफी है।
#नवनीतठाकुर न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज, भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए। दो वक्त की सिर्फ रोटी, या थोड़ा सा अनाज चाहिए। महल नहीं, एक छत काफी है, आराम नहीं, बस राहत काफी है।
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आरज़ू भी कहां सुकूं देती, सांस आती है पर नहीं जाती। हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी, आवाज कहीं असर नहीं पाती। यह सफर, यह तमाम रास्ते, खुद से मिलने की खबर नहीं लाती। किससे कहें ये दिल के किस्से, कोई सुनता है पर नहीं सुन पाती। आरज़ू और भी बढ़ती जाती है, मगर मंज़िल की कोई खबर नहीं आती। हर लम्हा ठहर-सा जाता है, जैसे सांस चलती, मगर नहीं आती। किसी मोड़ पर शायद जवाब मिले, पर सवालों की गूंज थम नहीं पाती। हमने खुद को भुला दिया है यहां, और जिंदगी ये समझ नहीं पाती। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर आरज़ू भी कहां सुकूं देती, सांस आती है पर नहीं जाती। हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी, कहीं आवाज असर नहीं पाती। यह सफर, यह तमाम रास्ते, खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।
#नवनीतठाकुर आरज़ू भी कहां सुकूं देती, सांस आती है पर नहीं जाती। हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी, कहीं आवाज असर नहीं पाती। यह सफर, यह तमाम रास्ते, खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।
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Unsplash ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर, सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती। हर तरफ धुंध-सी फैली हुई है, हकीकत कभी नजर नहीं आती। आरज़ू में कटती हैं सदियां, पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती। सफर भी है और मंज़िल भी है, पर कोई राह समझ नहीं आती। हर कदम पर ख्वाब टूटे यहां, पर आंखों से उम्मीद नहीं जाती। मौत से भी आगे कुछ होगा शायद, वरना ये रूह क्यों डर नहीं पाती। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर, सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती। हर तरफ धुंध-सा फैला हुआ है, हकीकत कभी नजर नहीं आती। आरज़ू में कटती हैं सदियां, पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती।
#नवनीतठाकुर ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर, सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती। हर तरफ धुंध-सा फैला हुआ है, हकीकत कभी नजर नहीं आती। आरज़ू में कटती हैं सदियां, पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती।
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न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा। हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा। हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से, हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में, आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा, हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से, हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में, आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा
#नवनीतठाकुर न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा, हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से, हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में, आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा
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ख़ुदा करे, इक सांस बगावत की भी मयस्सर हो, ये ज़िंदगी तो बस सलीकों में सिमट गई। दिल ने चाहा कि ज़रा बेख़ौफ धड़क लें, मगर हर धड़कन अदब के साए में घुट गई। अब इल्तिज़ा है कि थोड़ा खुला आसमान मिले, वरना ये हसरत भी वक्त के साथ ही मिट गई। ज़िंदगी जो हँसते हुए बसर करनी थी, वो शिकायतों के दायरों में ही सिमट गई। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर ख़ुदा करे, इक सांस बगावत की भी मयस्सर हो, ये ज़िंदगी तो बस सलीकों में सिमट गई। दिल ने चाहा कि ज़रा बेख़ौफ धड़क लें, मगर हर धड़कन अदब के साए में घुट गई।
#नवनीतठाकुर ख़ुदा करे, इक सांस बगावत की भी मयस्सर हो, ये ज़िंदगी तो बस सलीकों में सिमट गई। दिल ने चाहा कि ज़रा बेख़ौफ धड़क लें, मगर हर धड़कन अदब के साए में घुट गई।
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खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना न कोई इनाम हो। बस सच और मोहब्बत का दामन थाम ले, सफर का यही असली अंजाम हो। ग़म और खुशियों को बराबर समझ लो, हर लम्हा जीने का मुकम्मल मुकाम हो। जो है आज, वही सब कुछ है यार, किसे पता, कल का क्या इंतज़ाम हो। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना न कोई इनाम हो। बस सच और मोहब्बत का दामन थाम ले,
#नवनीतठाकुर खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना न कोई इनाम हो। बस सच और मोहब्बत का दामन थाम ले,
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आसमान खुद झुककर सलाम करता है, हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते। अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं, किसी की बंदिशों का सामना नहीं करते। खुद पर यकीन, किसी और पर गुरूर नहीं करते, सपनों को सच करने का खुद ही दूर नहीं करते। ऊंचाई पर जुनून का घर बसता है, परिंदे हैं, मगर फिजूल का शोर नहीं करते। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर आसमान खुद झुककर सलाम करता है, हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते। अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं, किसी की बंदिशों का सामना नहीं करते। खुद पर यकीन, किसी और पर गुरूर नहीं करते,
#नवनीतठाकुर आसमान खुद झुककर सलाम करता है, हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते। अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं, किसी की बंदिशों का सामना नहीं करते। खुद पर यकीन, किसी और पर गुरूर नहीं करते,
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इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे काग़ज़ पर गिरा, पानी का असर निकला। अरमान सजे थे जिनसे रोशन मेरी दुनिया, वो चिराग़ जला लेकिन हवा का असर निकला। मिलन की घड़ी आई तो जुदाई के साए थे, जिसे चाहा था अपना, वो भी बेख़बर निकला। ख़्वाबों की हक़ीक़त में जो देखा था कभी हमने, आईना दिखाया तो हर शक्ल बदल निकला। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे काग़ज़ पर गिरा, पानी का असर निकला। अरमान सजे थे जिनसे रोशन मेरी दुनिया, वो चिराग़ जला लेकिन हवा का असर निकला।
#नवनीतठाकुर इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे काग़ज़ पर गिरा, पानी का असर निकला। अरमान सजे थे जिनसे रोशन मेरी दुनिया, वो चिराग़ जला लेकिन हवा का असर निकला।
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चमक ने छुपा दी दिल की हर ख्वाहिशें, शोहरत की दौलत ने दी सिर्फ आज़माइशें। दौलत की बारिश से दिल प्यासा रहा, सुकून के दरिया का किनारा रहा। जो चाहा था दिल, वो हासिल न हुआ, जो मिला, उसमें सुकून काबिल न हुआ। सुकून ढूंढा, पर ठिकाना न मिला, शोहरत के बदले कोई अपना न मिला। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर चमक ने छुपा दी दिल की हर ख्वाहिशें, शोहरत की दौलत ने दी सिर्फ आज़माइशें। दौलत की बारिश से दिल प्यासा रहा, सुकून के दरिया का किनारा रहा। जो चाहा था दिल, वो हासिल न हुआ, जो मिला, उसमें सुकून काबिल न हुआ। सुकून ढूंढा, पर ठिकाना न मिला,
#नवनीतठाकुर चमक ने छुपा दी दिल की हर ख्वाहिशें, शोहरत की दौलत ने दी सिर्फ आज़माइशें। दौलत की बारिश से दिल प्यासा रहा, सुकून के दरिया का किनारा रहा। जो चाहा था दिल, वो हासिल न हुआ, जो मिला, उसमें सुकून काबिल न हुआ। सुकून ढूंढा, पर ठिकाना न मिला,
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