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MSA RAMZANI

यार भी राह की दीवार समझते है मुझे मैं समझता था मेरे यार समझते है मुझे हर रोज इक अता है खताओ के बावजूद मिलता है हमको रिज्क गुनाहो के बाबजु

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White यार भी राह की दीवार 
समझते है मुझे 
मैं समझता था 
मेरे यार समझते है मुझे 
हर रोज इक अता है 
खताओ के बावजूद 
मिलता है हमको रिज्क 
गुनाहो के बाबजुद 
बेबाकी देखियो तो जरा 
अपनी कौम की 
डरती नही खुदा से 
सजाओ के बावजूद
26/4/15

©MSA RAMZANI यार भी राह की दीवार समझते है मुझे 
मैं समझता था मेरे यार समझते है मुझे 
हर रोज इक अता है खताओ के बावजूद 
मिलता है हमको रिज्क गुनाहो के बाबजु

M R Mehata(रानिसीगं )

राजगृही नगरी Entrance examination

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जय माता दी 
राजगृही नगरी

©M R Mehata(रानिसीगं ) राजगृही नगरी  Entrance examination

CHOUDHARY HARDIN KUKNA

स्वामी विवेकानंद जयंती ******************** जागों-जागो उठो मेरे युवाओं आगे कदम मिलकर बढ़ाओ स्वामी जी के पद चिंन्हो फर जीवन अपना नेक बनाओं स

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White स्वामी विवेकानंद जयंती
********************
जागों-जागो उठो मेरे युवाओं
आगे कदम मिलकर बढ़ाओ
स्वामी जी के पद चिंन्हो फर
जीवन अपना नेक बनाओं

सेवा,समर्पण और लगन से
जीवन अपना ही सुधर जाए
स्वामी जी के मूल मंत्र को
जीवन में लाकर सफल बनाओ

स्वामी जी के ओजस्वी जीवन से
जीवन अपना स्वर्ग सा बना लो
नव ज्योति की किरण से अपना
सूरज का तेज मस्तिष्क सजाओ

एक ठोकर से तुम संभल जाओ
चरित्र अपना तुम हीरे सा बनाओ
सत्य कि डगर साहस से  बढ़ाओं
आजीवन सुख से समय बिताओ

कर्म से अपने तेजस्वी बन जाओ
माता-पिता का सम्मान बढ़ाओं
देश के खातिर मजबूत बनाओ
देशभक्ति के लिए फौलाद बनाओं

जो मार्ग से गिर जाते उसे उठाओ
गले लगाकर जीवन उसका बनाओं
विपदाओं के वक्त साहस दिखाओं
आजीवन  विजेयता सब कहलाओं

"उर" से संकल्पित हो जाओ युवाओं
मां भारतीय पुकारती है तुम सबको
विघा ज्योति जगाकर भविष्य बनाओं
सपनों को साकार कर पहचान बनाओं

परसेवा परहित से स्वयं जीवन बनाओं
निर्मल मन से ही पहचान तुम बनाओं
शिखरों कि चोंटी को तुमको है छूना
स्वामी जी की वाणी से जीवन सुधारों
#स्वामी विवेकानंद

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA स्वामी विवेकानंद जयंती
********************
जागों-जागो उठो मेरे युवाओं
आगे कदम मिलकर बढ़ाओ
स्वामी जी के पद चिंन्हो फर
जीवन अपना नेक बनाओं

स

Shivkumar barman

बारिश और साथ तुम्हारा ये रिमझिम से मौसम ने सुनी हो गई सारे सड़के, ये बारिश और साथ तुम्हारा ही चाहूँगी .. ठंड से जब मुझे लगे कपकपी तो , तुम

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ये रिमझिम से मौसम ने सुनी हो गई सारे सड़के,
ये बारिश और साथ तुम्हारा ही चाहूँगी ..
ठंड से जब मुझे लगे कपकपी तो ,
तुम मुझे अपने बांहों की चादर से ढंकना चाहूँगी...

ये बारिश की बूंदे भी ये प्यासी धरती को भींगा रही,
अपने प्रेम की सदा से उसकी प्यास बुझा रही..
तुम भी अपनी प्रेम से मुझे भी सजाओ न
मैं तुम्हारे उस प्रेम से संवरना चाहूँगी 

*
माना कि कुछ खता हमसे हुई तो कुछ तुमसे हुई है
मै अब सब कुछ भूलना चाहूँगी जो मैने किया 
फिर से मैं तुम संग यु जीना चाहूँगी 
मैं-और तुम फिर से एक नए सपने को बुनना चाहूँगी 

मौसम की ये पहली बारिश और तुम्हारे संग भींगना चाहूँगी 
थाम के तेरा हाथ सदा से भीगी सड़क पे चलना चाहूँगी 
मैं बेफिक्र होकर अब तुझमें ही खोना चाहूँगी 
तुमसे कभी रूठना तो कभी तुझे मनाना चाहूँगी

हमसे जो खुशियों के पल कही खो गए है
उन्हें तुम संग फिर से संयोज कर जीना चाहूँगी

©Shivkumar barman 
बारिश और साथ तुम्हारा

ये रिमझिम से मौसम ने सुनी हो गई सारे सड़के,
ये बारिश और साथ तुम्हारा ही चाहूँगी ..
ठंड से जब मुझे लगे कपकपी तो ,
तुम

संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

निरुत्साही =उदास,अभिसारी=प्रेमी या प्रेमिका अनुगामी= वफादारी, स्वप्न =सपने भाषा शैली स्वलिखित संस्कृत रचना हिन्दी अनुवाद सहित शीर्षक अप

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Ravendra

महा काल उज्जैन नगरी का मंदिर

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