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डॉ. शिवानी सिंह मुस्कान
#शिवानी हे अन्तःपुर के अभिलाषी| हे मौन दृगों के सुखराशी|| करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। हे माया,मोह,प्रेम,परिणय जिसमे सारी दुनिया तन्मय मै उनसे मुक्ति चाहती हूँ बनने दे मुझको सन्यासी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। स्पर्श-स्नेह का ये बंधन मोहित कर लेता सबका मन मत सींच मेरे मन की बेला हे दया सिंधु घट-घट वासी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। जब-जब तू शिवा कहायेगी तब-तब शंकर को पायेगी मै युगों-युगों से हूँ तेरा ये प्रेम सदा से अविनाशी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। ©डॉ.शिवानी मुस्कान पार्वती परिणय
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
विवाह एक महाबँधन जिसमे सत्यता की ,पवित्रता,व जीवन भर साथ निभाने की रस्में होती है विवाह,,,,,,एक परिणय
Vivek
मैं उसके दिल का उत्सव मैं उसकी मस्तियों का मेला उसकी बेशुमार मीठी बातों की भीड़ कहाँ छोड़ती है मुझे अकेला...!!! ©Vivek # उत्सव
मनस्विनी
Jai Shri Ram राम जी आए हैं मन को सबके आंनद हुआ है राम जी मन में उतर आए हैं तब हर पल उत्सव हुआ है उत्सव एक ही दिन नहीं मन में बसा कर अपने प्रभु को उत्सव हर पल मनाना है बस गये जब राम हृदय में,फिर नहीं मन को कहीं भगाना है प्रभु का हर पल संग रहना ये किसी उत्सव से कम नहीं, मन कहीं बाहर भटके नहीं ये किसी उत्सव से कम नहीं, सबमें दिखें मेरे राम जी ये किसी उत्सव से कम नहीं, कड़वी बातें भी अब लगती मीठी ये किसी उत्सव से कम नहीं, अपमान में भी मिलने लगा अब सुख ये किसी उत्सव से कम नहीं मन लगता नहीं तेरा मेरी में ये किसी उत्सव से कम नहीं, दोष किसी का दिखता नहीं ये किसी उत्सव से कम नहीं, सबसे है रिश्ता प्रेम का ये किसी उत्सव से कम नहीं, उत्सव के लिए साजों सामान नहीं, मन की सुंदरता चाहिए जिसमें बसे हो राम मेरे, ऐसा मन चाहिए सच्ची जहाँ रहते हों मीरा के गिरधर वहाँ होता है हर पल उत्सव उमंग उत्साह उल्लासित से भरपूर हो ये जीवन हम सबका यही मंगल कामना हम सबके के लिए प्रभु के श्री चरणों में जय जय श्री राधे कृष्णा ©Reema Mittal #jaishriram उत्सव मन का उत्सव
Manoj Swaraji
मनोज की कलम से: जज्बातों की हवा चली तो हुई धड़कनों से अनबन है धीरे-धीरे होले-होले जाने कैसी चली पवन है कविता लिखनें की कोशिश में खुद-बा-खुद बस चली कलम है ... रात की रानी मुझे सुनाती जैसे कोई मधुर ग़ज़ल है हल्के-हल्के होले-होले सुना रही मीठी सरगम है अधसोया सा जाग रहा हूँ उड़ी नींद मन हुआ मगन है .... क्या खोना है क्या पाना है क्या माटी है क्या चंदन है मध्यम-मध्यम होले-होले महक रहा सारा उपवन है अंतरमन का कमल खिले तो सारा जीवन ही उत्सव है ...☺ #उत्सव