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SHAYARI BOOKS
उसी से मायाजाल है। उसी से सत्य सार है।। उसी से कालचक्र है। शिवत्व ही समग्र है।। शिवत्व ही समग्र है।। 'रिक्तता' का राज था। शून्य सर्वव्याप्त था।। स्पर्श ना प्रकाश था। ना ध्वनि-निनाद था।। आकार जो लिए तभी। साकार जो हुए तभी।। ओम स्वर उदित हुआ। घोर तम विरत हुआ।। जिनसे सब प्रकट हुए। चन्द्र , सूर्य , ग्रह हुए।। प्राण का सृजन किए। सृष्टि का गठन किए।। प्रकृति जो दीप्त है। मिथ्य में प्रलिप्त है।। वाणी है विचार है। श्वास का आधार है।। वो सिद्ध पँचभूत है। सबका मूलरूप है।। तम, रज, सत्व वो। परम् ब्रह्म तत्व वो।। अनादि वो अनन्त वो। प्रचंड वो अखण्ड वो।। है 'वेद' वो, 'पुराण' वो। है ज्ञान का प्रमाण वो।। वो मोह वो विराग है। वो सूक्ष्म वो अगाध है।। प्रेतों का भी नाथ है। वो देव 'विश्वनाथ' है।। त्रिनेत्र वो त्रिकाल है। वस्त्र व्याघ्र छाल है।। भभूत का श्रृंगार है। गले 'भुजंग' माल है।। वही है मौन की ध्वनि। वही विलाप व्यग्र है।। शिवत्व ही समग्र है। शिवत्व ही समग्र है।। ©SHAYARI BOOKS उसी से मायाजाल है। उसी से सत्य सार है।। उसी से कालचक्र है। शिवत्व ही समग्र है।। शिवत्व ही समग्र है।। 'रिक्तता' का राज था। शून्य सर्वव्याप्त
Yashpal singh gusain badal'
"आनंद" जब हम अपने सबसे प्रिय से मिलते हैं तब हमारा मन कितना आनंदित होता है यह सब सभी अपने जीवन में यदा कदा महसूस अवश्य किया होगा । और इस आनंद के साथ शरीर भी एकाकार हो जाता है औऱ अपने भाव भंगिमाओं के जरिये इस आनंद को प्रदर्शित करने लगता है । तब असीम ऊर्जा और अनंत सुख से भरा यह शरीर अपने अंदर मौजूद सभी नकारात्मक तत्वों को खत्म करने लगता है और तब आपका मन और तन खुद को ऊर्जावान बना कर सकारात्मकता से भर देता है और इस वक़्त आप जो भी कार्य करेंगे वे सभी कार्य परिपक्व, एवं सकारात्मक होंगे ।हमारे यहाँ तो खुशियों में दान की परंपरा बहुत पुरानी है । इसी तरह आप कभी एकांत में प्रकृति के साथ बैठें और उसके साथ एकाकार होने की कोशिशें करें , और कुछ दिनों के अभ्यास के बाद ही खुद को प्रिय मिलन की तरह परम आनंदित महसूस करने लगेंगे ।चूंकि हमारा शरीर मूलरूप से प्रकृति के ही तत्वों से बना है इसलिए कुछ अभ्यास से ही यह मिलन का परम आनंद प्राप्त किया जा सकता है । बस हमें पवित्र मन से प्रकृति के आंचल में प्रेमपूर्वक बैठना भर है । ©Yashpal singh gusain badal' जब हम अपने सबसे प्रिय से मिलते हैं तब हमारा मन कितना आनंदित होता है यह सब सभी अपने जीवन में यदा कदा महसूस अवश्य किया होगा । और इस आनंद के स
Anurag Choursiya
।।पिता::संघर्षो की किताब।। (पिता दिवस पर पिता के एहसासों को बताती कवि अनुराग चौरसिया की एक कविता....) सूरज की तपिश में भी छाँव का एहसास हैं
Anurag Choursiya
।।वैसे तो ......वो मान जाया करती है।। ।।वैसे तो....वो मान जाया करती हैं।। *।।वैसे तो ... वो मान जाया करती है।।* ("वैसे तो" सिर्फ एक ऐहसास हैं जिसे *कवि अनुराग चौरसिया "रतलामी"*
Ravendra