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Praveen Jain "पल्लव"
Google पल्लव की डायरी वैश्वीकरण के दौर में भारत को विश्व की धारा से जोड़ा था आमजन भी मुख्यधारा में आये सबकी सम्पन्नता का द्वार खोला था वित्तमंत्री रहे हो या प्रधानमंत्री लोहा अपनी नीतियों का मनवाया था कम बोलते थे पर मनमोहन सिंह ने आर्थिक सम्पन्नता से विश्वपटल पर झंडा भारत का गाड़ा था याद रहेंगे युगों युगों तक गैर राजनीतिक के रूप में प्रधनमंत्री धरोहर इतिहास की कहलायेंगे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Manmohan_Singh_Dies धरोहर इतिहास की कहलायेंगे
#Manmohan_Singh_Dies धरोहर इतिहास की कहलायेंगे
read moreaditi the writer
Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer #मैथिली शरण गुप्त Kumar Shaurya Raj Sabri vineetapanchal @it's_ficklymoonlight
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Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer #मैथिली शरण गुप्त Kumar Shaurya Raj Sabri vineetapanchal @it's_ficklymoonlight
#मैथिली शरण गुप्त Kumar Shaurya Raj Sabri vineetapanchal @it's_ficklymoonlight
read moreSatish Kumar Meena
इतिहास गवाह है इतिहास गवाह हैं जब भी किसी ने अहंकार किया है उसका सर्वनाश निश्चित रूप से हुआ ही है। ©Satish Kumar Meena इतिहास गवाह है
इतिहास गवाह है
read moreAnil Rai
चाँदनी
White कभी कभी वहा भी बोल नही फूट पाए जहाँ जरूरी था अंतस् ने दुआएँ दी और लगा पूरे हो गए मन्नत कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए डूब जाती है कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित अलौकिक शक्तियां फल को भी गुप्त कर देती है या सृष्टि उसे स्वीकार कर सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर ©चाँदनी #गुप्त एहसास
#गुप्त एहसास
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