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Jiten rawat
Standing near the window, I saw अग्यार है तू मेरा यार न बन, तू एक ही रह हज़ार न बन। #अग्यार = अजनबी, प्रतिद्वन्दी (गै़र का बहुवचन) #nojotoshayri #nojotolover #aloneboy #nojotowriter #jitenrawat
Tarun Vij भारतीय
हुकूको का अपने जो तलबगार हो गया मैं, हुकूमत के आगे इक गुनहगार हो गया मैं। ©Tarun Vij भारतीय हुकूक - हक का बहुवचन तलबगार - मांगने वाला #politics #farmer #farmersprotest #fightforright #autocracy #tarunvijभारतीय
Tarun Vij भारतीय
हुकूको का अपने जो तलबगार हो गया मैं, हुकूमत के आगे इक गुनहगार हो गया मैं। हुकूक - हक का बहुवचन तलबगार - मांगने वाला #rights #politics #intolerance #farmer #farmersprotest #fightforright #autocracy #tarunvijभारतीय
Raveena Mahto
लेखक का दर्द.. एक लेखक का दर्द किसने देखा हैं कि शब्दों को संग्रह करते वक़्त , कितनी पीड़ाओ को महसूस वो करता हैं। तब जाकर वो शब्दों को उडेल पाता है। अपने विचारों को दूसरे के सामने रख पाता हैं। अपने शब्दों से ही, अपनी प्यास, अपना डर, अपना गुस्सा और कहीं अपना प्रेम दिखाने की कोशिश वो करता हैं। एक छोटे से पन्ने में, पूरी दुनिया के प्रेम, दर्द, दुख, सुख को समेटने की कोशिश, कहीं वो करता हैं। खुद को पुरा निकाल कर, कहीं शब्दों को वो बयां करता हैं। तो एक लेखक का दर्द किसने देखा हैं। उसकी एक रचना के पीछे कितनी पीड़ा का एहसास होता हैं। रवीना ©Raveena Mahto लेखक का दर्द #NatureLove
Yashu
लेखक वो नहीं जो अपना दर्द शब्दों में बयां करके पन्ने पर उतार देता हो । लेखक तो वो है जो दूसरों के दर्द को महसूस करके उसे भी निखार देता हो ।। #लेखक का सही अर्थ ।।
NEERAJ SIINGH
लेखक को लेखक से प्रेम करने की जरूरत नहीं पड़ती लेखक, लेखक का खुद प्रेम होता है #neerajwrites लेखक का प्रेम
Madhav Jha
यात्रा ही केवल लेखक का होना तय नही करता। पूर्णतः मन का विचार केवल साहित्य पर निर्भर नही। एक दृष्टीकोण से ये सही है मगर लेखक अपने मन का प्रतिनिधि है। एक साहित्यकार और एक गंवार दोनो ही लेखक हो सकते हैं। केवल उनमें मन के भाव का उद्गम होना उनके परिस्थिति और समय के अनुसार जन्म लेता या मिट जाता है। अब.. घट ही पट है और पट ही घट है। ये सिद्धान्त के अनुसार अगर एक घड़ा ही कपड़ा है तो आश्चर्य है कैसे। एक घड़ा मिट्टी का अंश है। वहीं एक कपड़ा जो उसी मिट्टी से कपास के द्वारा बना वह भी मिट्टी है। जैसे एक शरीर मिट्टी है, मरणोपरांत जब भस्मविभूषित होता है तो बचती केवल मिट्टी है। सार्विक तातपर्य है कारण और उसके करण। ऐसे ही लेखक है जो मन से उपजता है और अथाह है। एक लेखक का परिचय
अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "
मैं लेखक इंडिया का मैं लिखता हूँ, मुझे लिखने की जूनून है कितने लोग पढ़ते हैं यह उनका जूनून है मैं क्या जानू ! यह तो वो पढ़ने वाले जाने मैंने भरी थी ! कलम में स्याही या खून है आजकल तो सारी दुनिया अफलातून है मैं इंडिया का ऐसा नहीं का घर देहरादून है जन्में कितने मेरी तरह लेखक मजनून है कागज़ समझता है परिधि कितना अनून है ©Anushi Ka Pitara मैं लेखक इंडिया का #Books