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Biki subba

#Broken तिम्रो बियोगमा #poem

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Author Munesh sharma 'Nirjhara'

#mनिर्झरा वैभव विलास सब सोहत तोहे श्याम तोर रूप लुभावत मोहे द्वि कर पंकज मुरली लुभावती कान्हा तोरी प्रीत नचावति मोहे.! मोर हिय लेत हिलोर #Krishna #प्रेम #yqhindi #yqquotes #भक्ति #राधे_कृष्णा #yqbesthindiquotes

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वैभव विलास सब सोहत तोहे
श्याम तोर रूप लुभावत मोहे
द्वि कर पंकज मुरली साजती
कान्हा तोरी प्रीत नचावति मोहे.!


मोर हिय लेत हिलोर पल छन
जागत सोवत सपन दिखत मोहे
बियोग जोग रोग मोहू लागत है
मनोहर तोरी प्रीत बौरावत मोहे.!


दस दिसी सूरत दिखत तोही
काहे तू जग बिसरावत मोहे
कानन कुंज भटकत चाह तोहि
मुरलीधर काहे बिसराये तू मोहे!


मन कुमुद कुमलाये सोचत तोहे
हिय पीर  बढ़त ज्यों  चांद  मोहे
आवहु गिरधारी देर भली अब होय
थामहु छाँडि चलि सांस अब मोहे!
🌹
Copyright protected ©️®️ #mनिर्झरा 
वैभव विलास सब सोहत तोहे
श्याम तोर रूप लुभावत मोहे
द्वि कर पंकज मुरली लुभावती
कान्हा तोरी प्रीत नचावति मोहे.!


मोर हिय लेत हिलोर

अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

#adhooraintzar अधूरा इंतज़ार ******************** रोज-रोज चारों पहर, निशा उषा संध्या में..... बैठ देहरी पर छिछले बरामदे के

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अधूरा - इंतज़ार
कृपया पूरी कविता को कैप्शन में पढ़ें! #adhooraintzar

    अधूरा इंतज़ार
********************
 रोज-रोज चारों पहर,
 निशा उषा संध्या में.....
 बैठ देहरी पर
 छिछले बरामदे के

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड🙏 दोहा – 14 बजरंगबली श्री राम का संदेशा सुनाते है:- रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर। अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥14॥ #समाज

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🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 14
बजरंगबली श्री राम का संदेशा सुनाते है:-
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥14॥
हे माता! अब मै आपको जो रामचन्द्र जी का संदेशा सुनाता हूं,सो आप धीरज धारण करके उसे सुनो,ऐसे कह्ते ही हनुमानजी प्रेम से गदगद हो गए और नेत्रोमे जल भर आया ॥14॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

श्री राम का माता सीता के लिए संदेशा:-
कहेउ राम बियोग तव सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू॥
प्रभु श्री रामचन्द्रजी का संदेशा
श्री राम का माता सीता के लिए संदेशा
हनुमानजी ने सीताजी से कहा कि हे माता!रामचन्द्रजी ने जो सन्देश भेजा है वह सुनो।रामचन्द्रजी ने कहा है कि
तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी बाते विपरीत हो गयी है॥वृक्षो के नए-नए कोमल पत्ते मानो अग्नि के समान हो गए है।रात्रि मानो कालरात्रि बन गयी है।चन्द्रमा सूरजके समान दिख पड़ता है॥

प्रभु राम का सीताजी के लिए संदेशा
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥
कमलों के वन मानो भालो के समूह के समान हो गए है।मेघकी वृष्टि मानो तापे हुए तेल के समान लगती है,(मेघ मानो खौलता हुआ तेल बरसाते है)॥
मै जिस वृक्षके तले बैठता हूं, वही वृक्ष मुझको पीड़ा देता है और शीतल, सुगंध,मंद पवन मुझको साँप के श्वासके समान प्रतीत होता है॥

श्री रामचन्द्रजी अपनी स्थिति बताते है
कहेहू तें कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥
और अधिक क्या कहूं?क्योंकि कहनेसे कोई दुःख घट थोडा ही जाता है?परन्तु यह बात किसको कहूं! कोई नहीं जानता॥मेरे और आपके प्रेमके तत्व को कौन जानता है! कोई नहीं जानता।
केवल एक मेरा मन तो उसको भले ही पहचानता है॥

सीताजी संदेशा सुनकर भगवान् राम को स्मरण करती है
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही।
मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥
पर वह मन सदा आपके पास रहता है।
इतने ही में जान लेना कि राम किस कदर प्रेम के वश है॥ रामचन्द्रजी के सन्देश सुनते ही सीताजी ऐसी प्रेम मे मग्न हो गयी कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध न रही॥

हनुमानजी और माता सीता का संवाद
हनुमानजी माता सीता को धैर्य धरने के लिए कहते है
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता।
सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु ताई।रघुपति प्रभु
सुनि मम बचन तजहु कदराई॥
उस समय हनुमानजी ने सीताजी से कहा कि हे माता!आप सेवकजनोंके सुख देनेवाले श्रीराम को याद करके मन मे धीरज धरो॥श्री रामचन्द्रजी की प्रभुता को हृदय में मान कर मेरे वचनो को सुनकर विकलताको तज दो (छोड़ दो)॥

आगे शनिवार को ...,

विष्णु सहस्रनाम-(एक हजार नाम) 562 आज 573 से नाम

562 हलायुधः जिनका आयुध (शस्त्र) ही हल है
563 आदित्यः अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने वाले
564 ज्योतिरादित्यः सूर्यमण्डलान्तर्गत ज्योति में स्थित
565 सहिष्णुः शीतोष्णादि द्वंद्वों को सहन करने वाले
566 गतिसत्तमः गति हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं
567 सुधन्वा जिनका इन्द्रियादिमय सुन्दर शारंग धनुष है
568 खण्डपरशु: जिनका परशु अखंड है
569 दारुणः सन्मार्ग के विरोधियों के लिए दारुण (कठोर) हैं
570 द्रविणप्रदः भक्तों को द्रविण (इच्छित धन) देने वाले हैं
571 दिवःस्पृक् दिव (स्वर्ग) का स्पर्श करने वाले हैं
572 सर्वदृग्व्यासः सम्पूर्ण ज्ञानों का विस्तार करने वाले हैं
573 वाचस्पतिरयोनिजः विद्या के पति और जननी से जन्म न लेने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 14
बजरंगबली श्री राम का संदेशा सुनाते है:-
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥14॥
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