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N S Yadav GoldMine

#navratri {Bolo Ji Radhey Radhey} सहस्र चंडी यग्न :- 📜 सत्ता बल, शरीर बल, मनोबल, शस्त्र बल, विद्या बल, धन बल आदि आवश्यक उद्देश्यों को प्राप् #भक्ति

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Rakesh Kumar Sah

#जीवन रूपी भवसागर के मजधार में फांसी मेरी नैया अब तुम ही पार लगाओ कन्हैया🙏 #rakeshkumarsahpoetry #bhavsagar #prathna #जय जय श्री राधे🙏 #Poetry

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Nirupa Kumari

#Dil Ragini Preet Uday Kumar हरप्रीत कौर की ज़ुबानी कविता किस्से कहानी Neha Nandan #शायरी

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Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

#aaina हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की #विचार

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Dk Patil

*॥ धर्मवीर बलिदान मास ॥* *श्लोक क्रमांक. १६* ************************** *#श्रीसंभाजीसुर्यहृदय* ⛳ खड्गाहूनी हि करण्या मन धारदार । भाल #पौराणिककथा #धर्मवीर_बलिदान_मास #गुरुवर्य_श्रीसंभाजीराव_भिडे_गुरुजी

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Krishna Deo Prasad. ( Advocate ).

#Holi #चाहें कैसी भी परिस्थिति में हो, " आप " पर इतना खुश एवम मुस्कुराते रहे, कि आपको देकर जलने वाले की जलन रूपी आग धधकती रहें !!💕!! #ज़िन्दगी

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Arora PR

मन रूपी घोड़ा #कविता

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healthy tips

🟥🌷🟩 *जब पुत्र* *हजारों लोगों के बीच* खड़ा हो कर आपने जीवन मे *माता पिता के समर्पण* को दिल *खोल कर स्वीकार* करता है। #समाज

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Devesh Dixit

#हँसी #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi हँसी (दोहे) हँसी खिले मुख पर तभी, जीवन हो आसान कहते हैं सज्जन सभी, बात यही तू मान।। आनंदित म #Poetry #sandiprohila

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कोलाहल :- गीत अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा । घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।। अंतर्मन के कोलाहल को .... #कविता

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कोलाहल :- गीत
अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा ।
घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।।
अंतर्मन के कोलाहल को ....

जीवन जीना सरल नहीं है , आती इसमें है बाधा ।
मूर्ख नही बन हे मानव तू , चला शरण जा अब राधा ।।
जप कर उनकी माला तू भी , मुक्ति मार्ग को पायेगा ।
अंतर्मन के कोलाहल को....

तन मानव का जब भी लेकर , तू धरती पे आयेगा ।
फिर खुशियों की खातिर तू ही , अपने नियम बनायेगा ।।
जिसकी माया में ही तू खुद , स्वयं उलझता जायेगा ।
अंतर्मन के कोलाहल को.......

भाग-भाग कर सुख के साधन , दुख देकर जो लाता है ।।
लेकिन पर भर सुख का अनुभव , कभी नहीं कर पाता है ।।
अन्त समय में देख वही फिर , रह रह के पछतायेगा 
अन्तर्मन के कोलाहल को .....

रूप बदल कर मानव ही सुन , इस धरती पे आयेगा ।
लेकिन अपनी ही करनी को , ज्ञात न वह रख पायेगा ।।
माया रूपी इस जीवन का  , चाल नही रुक पायेगा ।
अन्तर्मन के कोलाहल को ...

अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा ।
घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।।

३०/०१/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कोलाहल :- गीत


अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा ।

घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।।

अंतर्मन के कोलाहल को ....
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