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New लॉक डाउन मीनिंग Quotes, Status, Photo, Video

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Farooq Farooqui

लॉक डाउन

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बे वजह घर से निकलने की जरूरत क्या है,मौत से आँखे मिलाने की जरूरत क्या है,सब को मालूम है बाहर कि हवा है कातिल,यू ही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है,जिंदगी एक नेमत है इसे सम्भालकर रख्खो,कब्रगाहों को सजाने कि जरूरत क्या है,दिल बहलाने के लिये घर मे वजाह है काफी,यू ही गलियों में भटकने की जरूरत क्या है, लॉक डाउन

Shiv Goriya Goriya

लॉक डाउन

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कभी कभी लोगो की सोच देख कर 
लगता है 
सब लॉक डाउंड मै लोग 
दिमागी रूप से विकलांग हो गए है लॉक डाउन

Anuj thakur "बेख़बर"

लॉक डाउन #लॉकडाउन

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हालात ऐसे गूंगे भी बने सवाली बैठे हैं!
दहशत इतनी कि सीधे भी बने बवाली बैठे हैं!!
जो कहते थे मरने भर का समय नही है मेरे पास!
वो मौत के डर से आज "खाली" बैठे हैं!!
#लॉकडाउन
                           
                                        अनुज *बेख़बर* लॉक डाउन

Bhabesh Mahato

#लॉक डाउन #कविता

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लॉक डाउन

फासला मीटा नहीं सकते कोई घर
राहत सदा के लिए नहीं होती

समय थम सा गया है
मेरे पैरों के नीचे
दबे पैरों में, मैं चल रहा हूं...

धरती को रोशनी देती है सूरज
खुद जलते हुए

मैं जल रहा हूं
अपनों को जला कर।
                                      - भवेश #लॉक डाउन

madan sunder pradhan

लॉक डाउन

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सन्नाटा फैला सारे टॉउन में।
काश तेरे घर मे फसे होते इस लॉक डाउन में। लॉक डाउन

gio creation

लॉक डाउन #nojotophoto

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 लॉक डाउन

Farooq Farooqui

लॉक डाउन

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अब परिदों का शोर सुनाई नही देता,वीरान पड़ी सड़को पर कोई दिखाई नही देता,ये कैसी आपदाओं से घिर गया है शहर,अब बन्द गलियों में भी कोई दिखाई नही देता, लॉक डाउन

mradul jain luky

#लॉक डाउन #अनुभव

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ये तो दारू थी साहब जो 7०% ज्यादा पैसे दे कर पी गया 
गर दवाई होती तो पूछता डिस्काउंट क्यो नही दिया गया


(अतीत के पन्नो से) #लॉक डाउन

अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "

लॉक डाउन #विचार

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सड़कें हो गई सूनी..
मंहगाई हो गई दुनी !
मंदिर-महजिद बंद बा
के तोहर-हमर सूनी ! लॉक डाउन

pradeep ojha

लॉक डाउन

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"लॉक-डाउन"
ना तुम हो ना तेरा साथ,
कैद हो गये हैं जैसे..
जेल की "सलाखें"हों.?
भुगत रहे हैं हम..
दूसरों के "गुनाहों" की सजा..
अकेले हैं.."घूरती" दिवालें हैं
मुँह चिढ़ाते पंखे हैं..
हजार सवाले हैं..मगर,
वो भी चुप, हम भी चुप.!
चिपक गई हो जुबां जैसे तालू में..
अल्फाज हैं पर निकल नहीं सकते..
गूंगे भी नहीं,पर बोल भी नहीं सकते..
सुनेगा भी कौन.? किसे सुनाएंगे..
मन का गीत भी कैसे गुनगुनायेंगे
स्वस्थ हैं पर रोगों से जंग जारी है
ये कैसी विपदा,ये कैसी"महामारी"है.?
एक उम्मीद है,कल की सुबह..
चिड़ियां भी चहचहाएँगे..
हम फिर से अपनों संग,खिलखिलायेंगे.!   
               
~प्रदीप ओझा~ लॉक डाउन
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