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manoj kumar jha"Manu"
चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा चतुर्विधम्। प्रसादयती यो लोकं तं लोगों लोकोअनुप्रसीदति।। जो राजा नेत्र, मन, वाणी और कर्म - इन चारों से प्रजा को प्रसन्न करता है, उसी से प्रजा प्रसन्न रहती है। विदुर नीति २.२५ (महाभारत) राजनीति सिखाएं
Sanjeev Jha
कितने बदल गये-2 कुएं के पानी का अदहन चावल पकाता था बड़े बाबा के पूजाथाल का पंचपात्र भराता था दफन कुआं के कंकर आज आंखों को रुलाते हैं लड़कपन के कई किस्से जेहन को बुलबुलाते हैं चटाई एक थी जिस पर पढ़ाई गांव करता था लड़ाई कम न थी पर न कोई खून का प्यासा था चटाई टुकड़ियों में देख अंदर तक हिलाते हैं लड़कपन के कई किस्से जेहन को बुलबुलाते हैं क्रमशः... ©संजीव #कुएं #अदहन #पूजाथाल #पंचपात्र #लड़कपन #चटाई #ColdMoon
Amit premshanker
नई पलंग पर मैं सोऊंगा लड़ता था कभी यह कह के नहीं मैं खाना खाऊंगा मैं रूठ जाता था यह कह के कहां लड़कपन छूट गई जाने कब कैसे बड़े हुए बीत चुके हैं कई बरस हां तकियों से अब लड़े हुए। क्या मम्मी,क्या पता तुम्हें मैं कब कब एका होता हूँ। दो फुट की चटाई में, मैं कैसे सिमटकर सोता हूँ।। नहीं मैं कपड़े धोऊंगा ना खाना कभी बनाऊंगा आज तो ठंडी बहुत है पापा बारह बजे नहाऊंगा कहते थे नालायक मुझे तो मन ही मन में रोता था नहीं रहे अब वो दिन जब मैं आठ बजे तक सोता था। देख ले आ के बाबुजी अब खुद ही कपड़े धोता हूँ। दो फुट की चटाई में मैं कैसे सिमटकर सोता हूँ।। आठ-दस का कमरा है कमरे में ही एक मोरी है चार-छः का एक चादर सुती की बिल्कुल कोरी है दिक्कत ना हो दुसरे को हां ये भी ध्यान ज़रूरी है पैर नहीं फ़ैला सकता ये भी कैसी मजबूरी है। कहते थे ना पापा तुम, मैं पैर चढ़ा कर सोता हूँ। अब दो फुट की चटाई में मैं कैसे सिमटकर सोता हूँ कर दिया बेगाना मुझको घर की जिम्मेदारी ने जो देखा ना, दिखलाया इस पेट की दुनियादारी ने मेरी मेहनताना से बस इतनी सी एक आशा है हंसी ख़ुशी परिवार रहे हां यही मेरी अभिलाषा है इसी आस से घर का बोझा अपने सर पर ढोता हूँ। दो फुट की चटाई में मैं कैसे सिमटकर सोता हूं।। कवि:- अमित प्रेमशंकर एदला,सिमरिया,चतरा(झारखण्ड) ©Amit premshanker do fut ki chatai दो फुट की चटाई #Rose
Stranger Traveler!
सितारों की तरह चमकना सिखा है जान ना मैंने आज खुद को सिखा है खुद को बनाया है ताकतवर इतना कि बादलो को मैंने चीरना सीखा है एक दिन वह था ना काम था मैं सब कुछ करने में पल पल में मैंने खुद को मारना सिखाएं आज भी वैसा ही हूं बस खुद के अंदर कुछ बदलना सिखाया by Ram ji सितारों की तरह चमकना सिखाएं
Rakesh Kumar Dogra
हम केन्द्र में है दिल्ली-वासी कोई बतलाएगा कि "हमें कौन सी सरकार चलाती है" चलाना=बनाना
Sanjeev gupta
ना जाने वो कौनसा पल था दस्तक हुई उनकी इस विरान दिल में महक गई सांसें बहक गया मन चांदनी बिखर गई सारी महफिल में रेशम से बाल उस पर सुर्ख गाल गोता लगा रहे थे देखते ही देखते उनकी नशीली नैनों की झील में नर्म गुलाबी होठों का कंवल सा खिल जाना उस पर उनके चमकते दांतों का बतियाना गजब ढा गया अनजान बन जिंदगी में आना नशा उनको कहें या कहें शराब को दोनों का ही काम अपना महबूब बनाना महबूब बनाना