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Vedantika
मा'दूम न हुआ मंज़र-ए-लहू आँखों से, जब से कोई अपना हमें तन्हा कर गया। देते रहे सब लोग लाख तसल्ली हमें मगर, वक़्त हमें अपने ही ज़िस्म में कैद कर गया ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्
Dr Upama Singh
मा’दूम हो रही है हमारी विरासत और संस्कृति इसे संजोने की जिम्मेदारी हमारी ताकि देख सकें हमारी आने वाली पीढ़ी ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्
Chandan Yadav
उस के ख़याल की नुमूद अहद-ब-अहद जावेदाँ बस ये कहो कि 'जौन' है ये न कहो कि मर गया ~ पीरज़ादा क़ासीम हम कहीं के भी नहीं पर ये है रूदाद अपनी
Divyanshu Pathak
मुझे होश नहीं आज़कल नींद में रहता हूँ। ये ग़फ़लत है कि बाहमी जींद में रहता हूँ। ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "बाहमी" "baahamii" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है पारस्परिक, आस-पास का, आपस का एवं
Vedantika
मरासिम फ़क़त बाहमी नहीं तुमसें मोहब्बत का भी हो चला बेखबर रह गए हम अहल-ए-वफ़ा से और दिल तेरा हो चला न इक़रार हुआ तुमसें और न हमने भी इजहार ही किया कभी बस निगाह से मिली निगाह रूह को इस बात का इल्म हो चला ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "बाहमी" "baahamii" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है पारस्परिक, आस-पास का, आपस का एवं
Dr Upama Singh
हर रिश्ते को बना कर रखो अपने बाहमी कद्र करो हर रिश्ते की सभी अहमियत ख़ास ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "बाहमी" "baahamii" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है पारस्परिक, आस-पास का, आपस का एवं
Vaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
Akthari Begum
🙌🙌 زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
Vaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے