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CK JOHNY
तू वर्ष बीस सा मैं इक्कीस सा हुआ तेरे जाने और मेरे आने की माँगे सब दुआ। अपने अपने कर्मों की बात है प्यारे जिसने जैसा किया वैसा उसके साथ हुआ। आगाज मेरा भी तेरे जैसा था बस कोरोना की कुसंगति में पड़ गया गलत संगत ने मेरे माथे कलंक जड़ दिया। इक्कीस मेरे भाई तू कुसंगति से बचना सबके लिए बस मंगल ही मंगल करना। लोग तुझ जैसे वर्ष की मांगा करेंगे दुआ। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ बीस इक्कीस
manju sharma
इक्कीसवीं सदी में यह क्या नया दौर आया है जो मदद करता है किसी की उसने ही धोखा खाया है यह कैसी आधुनिकता दिखा रहा इंसान जो अपने कहलाते हैं उन्होंने ही जहर पिलाया है इक्कीसवीं सदी
CK JOHNY
कई सपने टूटे कई अपने छूटे सन दो हजार बीस में। प्रभु ये वर्ष तो बीत गया बस टीस में। ऐसा प्रकोप इनसान ने कभी न देखा था न जाने किस जन्म का सबका लेखा था। अच्छा अच्छा वैज्ञानिक भी दिखा खीस में। सन दो हजार बीस में। भगवन अल्पज्ञ जीव की और न परीक्षा लो और न ईनसानों के गुनाहों की समीक्षा करो। कान पकड़ नाक रगड़ माफी मांग ली इस ने। सन दो हजार बीस में। आने वाले वर्ष में सबको हर्षा दो मानव पर अपनी दया मैहर की वर्षा करो। मन्नत पूरी कर दो सबकी सन इक्कीस में। कई सपने टूटे कई अपने छूटे सन दो हजार बीस में। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ बीस-इक्कीस
Mohan Sardarshahari
हवाऐं बहुत खुश्क हैं फ़जा में सावन नदारद है कहीं कोई उल्लास नहीं दिलासाओं की कवायद है उन्नीस तो अच्छा था ये बीस- इक्कीस क्यों आयद है।। ©Mohan Sardarshahari ये बीस-इक्कीस
Mr.Poet
बूढ़ा दिसम्बर अब जवाँ जनवरी के स्वागत के लिए आतुर हो रहा है... लो इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवा साल लग रहा है। ©Mr.Poet बूढ़ा दिसम्बर अब जवाँ जनवरी के स्वागत के लिए आतुर हो रहा है... लो इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवा साल लग रहा है। #bye2020
Pawan
जय श्रीकृष्ण ©Pawan इक्कीस हजार रुपये किलो की मिठाई
आलोक कुमार
आखिरी फैसला मित्रों....बस यूँ ही चलते-चलते अपने देश में विभिन्न सरकारों द्वारा किसी सन्दर्भित विषय पर लिए गए फैसलों में से किन फैसलों को आप चिरस्थायी काल तक विद्यमान रहने एवं सभी भारतवासियों द्वारा स्वीकार्य फैसला मानते हैं और जिसे "आख़िरी फ़ैसला" की संज्ञा देने की बात मन में दौड़ाने की कल्पना कर सकें. शायद ऐसा कोई फैसला दूर-दूर तक अब तक नजर आया ही नहीं. तो फिर आख़िरी फ़ैसला का तो जिक्र करना बेवकूफ़ी और मूर्खतापूर्ण भरी ही परिपाटी होगी. तो फिर "आख़िरी फ़ैसला" का प्रारुप, आलेख एवं श्रोत का माध्यम किसे बनाना उचित होगा. जैसा कि अब तक संविधान रूपी मानव के दिशानिर्देशों एवं प्रावधानों के आधार पर "आख़िरी फ़ैसला" दिया जाता रहा है, जो कि एक-दूसरे के लिए वर्ग के आधार पर खुद में ही अलग-थलग हुआ है. अब सत्तर साल गुज़र चुके हैं, जो कि वर्तमानकालीन वातावरण के अनुसार मानवों के औसत उम्र 60 वर्ष से 10 वर्ष ज्यादा भी हैं. इसलिए अब नए वातावरण के अनुसार संविधान रूपी मानव की पदस्थापना करना अत्यावश्यक होना भी लाज़िमी हो गयी है. मेरा मानना है कि यह इक्कीसवी शताब्दी की पहली "आख़िरी फ़ैसला" बन जाएगी. सधन्यवाद............... "इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"