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Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
ᴘᴜʟᴋɪᴛ ʏᴀᴅᴀᴠ.
ᴋɪsɪ ᴋᴏ ʙʟᴏᴄᴋ ᴋᴀʀ ᴋᴇ ʜᴜᴍ sᴜᴋᴏᴏɴ ᴋᴇ sᴀᴛʜ ɴʜɪ sᴏ sᴋᴛᴇ...🦋 ᴋᴀss sᴍᴊʜ ᴊᴀᴀᴛᴇ ᴀᴀᴘ...🥹 :-) ©ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी. #Block कास ये ब्लॉक का ऑप्शन ना होता 🥹 ब्लॉक करने के बाद उसकी बहुत याद आती है
ᴘᴜʟᴋɪᴛ ʏᴀᴅᴀᴠ.
White धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है, लेकिन खुद को बदलना होगा अब समय के अनुसार."🦋 ©ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी. #Romantic #समय के साथ सब कुछ बदल जाता है।🦋
N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} जो अपनी गलतियों से सीखता है, और दुसरे तरीकें अपनाता है, वह् सफल होता है !! ©N S Yadav GoldMine #mountain {Bolo Ji Radhey Radhey} जो अपनी गलतियों से सीखता है, और दुसरे तरीकें अपनाता है, वह् सफल होता है !!
Ashish Singh
karishma Gujjar motivation quote
कल मैंने सभी लेखकों को प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए एक मैल लिखा नोजोटो टीम को उसे आप नीचे Coptaion में पढ़ें और नोजोटो टीम की उस मैल पर प्रक्रिया बहुत ही सराहनीय रही पुरा लेख पढ़ें। ©karishma Gujjar motivation quote नमस्कार नोजोटो टीम में करिश्मा जो की आपके हमारे प्रिय नोजोटो ऐप पर लिखते https://nojoto.page.link/JfSNv हुये मुझे एक साल से ऊपर का समय कब
Harpinder Kaur
White हां अगर जिंदा रहता... तो जुदा होने पर आंखें न तो रोती और न ही अंधेरी रातों में तकती उसके आने का रास्ता और न ही यादें कचोटती पल - पल अंदर से ....... इतना कुछ होने के बाद भी फिर कैसे कह दिया जाता है और क्यों समझ लिया जाता है.... कि किसी के जुदा होने से कोई नहीं मरता हां, मरता है.... शरीर से नहीं..... पर अंदर से सब कुछ मरता है (part- 2) ©Harpinder Kaur # कितना कुछ मरता है भीतर.....
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।