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रजनीश "स्वच्छंद"

मेरी ज़द।। किसी का कहना था, ज़द में रहना था, रह मौन हमे, बस सब कुछ सहना था। कौन कब अपना था, वो बस सपना था, बैठ अकेले, कोने में माला जपना था। #Poetry #Quotes #Life #Truth #kavita #hindikavita #hindipoetry

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मेरी ज़द।।

किसी का कहना था, ज़द में रहना था,
रह मौन हमे, बस सब कुछ सहना था।

कौन कब अपना था, वो बस सपना था,
बैठ अकेले, कोने में माला जपना था।

समर कब थमना था, लहु तो बहना था,
पांव तले कुचल अपनो को, बढ़ना था।

सूरज का चलना था, उगना ढलना था,
हो तन्हा जग में, खुद ही बहलना था।

औरों से जलना था, हथेली मलना था,
तुम बोलो, किस्मत का कब टलना था।

अश्कों का बहना था, मन का कहना था,
बिन अपनो के, हकीकत भी सपना था।

कलम का चलना था, स्याह सब करना था।
भावों को, हो कविता छंद, बस मरना था।

©रजनीश "स्वछंद" मेरी ज़द।।

किसी का कहना था, ज़द में रहना था,
रह मौन हमे, बस सब कुछ सहना था।

कौन कब अपना था, वो बस सपना था,
बैठ अकेले, कोने में माला जपना था।

रजनीश "स्वच्छंद"

जगह मिलने पर पास देंगे।। ज़िन्दगी अनवरत भागती कहती मुझसे, जगह मिलने पर पास देंगे। ज़िन्दगी रातों को जागती कहती मुझसे, जगह मिलने पर पास देंगें #Poetry #Quotes #Life #Truth #kavita

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जगह मिलने पर पास देंगे।।

ज़िन्दगी अनवरत भागती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।
ज़िन्दगी रातों को जागती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगें।

किन हाथों की उंगली पकड़ चला था,
क्या शेष बचा जो चलना था।
ज़िन्दगी हाथों को झाड़ती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

किन रिश्तों का मन मे वहम पला था,
क्या शेष बचा जो पलना था।
ज़िन्दगी नातों को जानती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

अनजान था सब से पर बहुत खला था,
क्या शेष बचा जो खलना था।
ज़िन्दगी बातों को भाँपती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

लगा एक आग मैं दिल मे बहुत जला था,
क्या शेष बचा जो जलना था।
ज़िन्दगी यादों को झांकती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

बांट मुझे मिलकर सबने बहुत छला था,
क्या शेष बचा जो छलना था।
ज़िन्दगी जातों को छांटती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

अहं के ज्वर में जीवन ये बहुत गला था,
क्या शेष बचा जो गलना था।
ज़िन्दगी मातों को आंकती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

क्षुधा-स्वार्थ ही जीवतरु में बहुत फला था,
क्या शेष बचा जो फलना था।
ज़िन्दगी आंतों को नापती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

परमेश्वर भी पाषाण में बहुत ढला था,
क्या शेष बचा जो ढलना था।
ज़िन्दगी नाथों को ढाँपती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

शुष्क रेत पर जीवन ये बहुत तला था,
क्या शेष बचा जो तलना था।
ज़िन्दगी माथों को थामती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

समय भी बेपरवाह ये बहुत टला था,
क्या शेष बचा जो टलना था।
ज़िन्दगी रातों को कांपती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।

©रजनीश "स्वछंद" जगह मिलने पर पास देंगे।।

ज़िन्दगी अनवरत भागती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगे।
ज़िन्दगी रातों को जागती कहती मुझसे,
जगह मिलने पर पास देंगें
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