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Sachin Awasthi
Bhavesh Thakur
प्रेम और आकर्षण ©Bhavesh Thakur "Rudra" आकर्षण और प्रेम मै गुजर रहा था एक पथ से एक पथिक ने मुझसे पुछा क्या है ये आकर्षण? मै अज्ञानी झट बोल पड़ा ये प्रेम है या हैं दो हृदयों का घर्
Abhishek Omprakash Mishra
जिनका ये एलान है कि वो मज़े में हैं, या तो वो फ़कीर हैं, या फिर नशे में हैं। ©Abhishek Omprakash Mishra जिनका ये एलान है कि वो मज़े में हैं, या तो वो फ़कीर हैं, या फिर नशे में हैं। #standAlone
Ajit Kumar
मीडिल क्लास वाले लोग कभी नहीं हारते हैं, केवल जीतते है या फिर सीखते है । ©Ajit Kumar जीतते हैं या सीखते हैं ।
Rakesh Kumar Dogra
दिल्ली वालों मजनूँ के टीले पर मजनूं नहीं है, उसे माल रोड के किसी नुक्कड़ पर ढूंढा जाए। जो DU के स्टूडेंट हैं या रह चुके हैं उन्हें समर्पित है
Muskan Singh
रातें कान लगाकर सुनती है, प्रेमी सोते हैं या फिर रोते हैं! dimpal🥀 ©Muskan Singh रातें कान लगाकर सुनती है, प्रेमी सोते हैं या फिर रोते हैं! #ujala
MoLi SaiNi
ये खुबसुरत नजारा हैं या********* सुखा कोई पेड़ है🤔
Asheesh Singh Bunty
🌺🙏🌺 *कहाँ गुम हो गए संयुक्त परिवार* *एक वो दौर था* जब पति, *अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर* घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था । पत्नी की *छनकती पायल और खनकते कंगन* बड़े उतावलेपन के साथ पति का स्वागत करते थे । बाबूजी की बातों का.. *”हाँ बाबूजी"* *"जी बाबूजी"*' के अलावा दूसरा जवाब नही होता था । आज *बेटा बाप से बड़ा हो गया, रिश्तों का केवल नाम* रह गया । ये *"समय-समय"* की नहीं, *"समझ-समझ"* की बात है बीवी से तो दूर, बड़ों के सामने अपने बच्चों तक से बात नहीं करते थे *आज बड़े बैठे रहते हैं हम सिर्फ बीवी* से बात करते हैं! दादाजी के कंधे तो मानो, पोतों-पोतियों के लिए आरक्षित होते थे, *काका* ही *भतीजों के दोस्त हुआ करते थे ।* आज वही दादू - दादी *वृद्धाश्रम* की पहचान हैं, *चाचा - चाची* बस *रिश्तेदारों की सूची का नाम हैं ।* बड़े पापा सभी का ख्याल रखते थे, अपने बेटे के लिए जो खिलौना खरीदा वैसा ही खिलौना परिवार के सभी बच्चों के लिए लाते थे । *'ताऊजी'* आज *सिर्फ पहचान* रह गए और,...... *छोटे के बच्चे* पता नही *कब जवान* हो गये..?? दादी जब बिलोना करती थीं, बेटों को भले ही छाछ दे पर *मक्खन* तो *केवल पोतों में ही बाँटती थी।* *दादी ने* *पोतों की आस छोड़ दी*, क्योंकि,... *पोतों ने अपनी राह* *अलग मोड़ दी ।* राखी पर *बुआ* आती थीं, घर में ही नहीं *मोहल्ले* में, *फूफाजी* को *चाय-नाश्ते पर बुलाते थे।* अब बुआजी, बस *दादा-दादी* के बीमार होने पर आती हैं, किसी और को उनसे मतलब नहीं चुपचाप नयननीर बरसाकर वो भी चली जाती हैं । शायद *मेरे शब्दों* का कोई *महत्व ना* हो, पर *कोशिश* करना, इस *भीड़* में *खुद को पहचानने की*, *कि*,....... *हम "ज़िंदा हैं"* या *बस "जी रहे" हैं"* अंग्रेजी ने अपना स्वांग रचा दिया, *"हमने, शिक्षा के चक्कर में* *संस्कारों को ही भुला दिया"।* बालक की प्रथम पाठशाला *परिवार* पहला शिक्षक उसकी *माँ* होती थी, आज *परिवार* ही नहीं रहे पहली *शिक्षक* का क्या काम...?? "ये *समय-समय* की नही, *समझ-समझ* की बात है! कुछ साल बाद हम दो ,हमारे दो के चक्कर में परिवार खत्म हो जाएगा । मामा रहेगा, तो मौसी नही होगी मौसी होगी तो मामा नही होगा चाचा होगा तो बुआ नही होगी बुआ होगी तो चाचा नही होगा । *काका ,काकी ,बड़े पापा-बड़ी मम्मी* *बुआ-फूफा ,मामा-मामी* *मौसा-मौसी ,ताऊ-ताई जी* *न जाने ऐसे कितने रिश्तों के* *संबोधन के लिए हम तरसेंगे ।।* *🙏सादर अभिनंदन🙏* ©Asheesh singh bunty हम जिंदा है या बस जी रहे हैं #Nojoto #asheeshsinghbunty