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mohd adil ansari

हम गिरे बहुत हैं हमें तुम उठो मत आज  तुम उठाओगे तो कल कोई और गिरा देनाग

©mohd adil ansari uthao mat 

#WatchingSunset

Zuber Ali

Ke uthao zam

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Uthao zam ke duniya  jannat se kam nahi
ke uthao zam ke duniya jannat se kam nahi
ke piyo etna ke tujhe jabtak aetwar
 aajaye




Juber zakhmi
 Ke uthao zam

Zuber Ali

Ke uthao zam

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Uthao zam ke duniya  jannat se kam nahi
ke uthao zam ke duniya jannat se kam nahi
ke piyo etna ke tujhe jabtak aetwar
 aajaye




Juber zakhmi Ke uthao zam

Priyanshu

#aawaj uthao bus aawaj #जानकारी

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Priya Godiyal

hesha सही कदम uthao #steps

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high drive shorts

koi mera bhi fayda uthao #Comedy

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Priya Godiyal

hesha सही कदम uthao #steps #बात

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कदम, 
दुनिया मे कदम सिर्फ एक ऐसी चीज है 
जो सही के लिए उठाया जाये तो 
हमेसा खुशियां और आत्मविश्वास देता है, 
और अगर गलत कदम उठा लिया जाये तो हमेसा के लिए हमारे जीवन मे 
दुख का कारण बन जाता है। 
किस्मत पर भरोसा तो होता है पर एक कदम बस एक कदम हमारी जिंदगी का फैसला कर देता है।

©priya godiyal hesha सही कदम uthao

#steps

Mohammad Aatif

Pehla kadam imandari se uthao....... #Motivational

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Navya Singh

dusron per ungali Na uthao #ज़िन्दगी

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manoj solanki boddhy

#Sach ke liye awaj uthao

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बहुत कम लोग जानते होंगे कि 2002 से 2003 के बीच संजीव भट्ट साबरमती जेल में तैनात थे। साहब से अनबन के कारण साबरमती जेल से संजीव भट्ट का तबादला कर दिया गया। सरकार के इस फैसले के विरोध में जेल के लगभग 2000 कैदियों ने अगले 6 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनमें से 6 कैदियों ने तो अपनी नसें भी काट लीं थीं। 

क्या आपने कभी सुना है एक पुलिस अधिकारी के ट्रांसफर के लिए जेल के कैदी भूख हड़ताल रख रहे हों, 6-6 दिन भूखे रह रहे हों! अपनी नसें काट लीं हों? 

ये सीन प्रेम कहानियों का तो हो सकता है लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए कैदियों द्वारा नसें काटना ? कोई थ्रिलर मूवी जैसा लगता है न!!
संजीव भट्ट उन कैदियों के प्रेमी तो लगते नहीं थे? न ही उनके संगी-संबंधी। फिर साबरमती जेल के कैदियों को पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट से इतना लगाव क्यों था? 

इसके पीछे का कारण भी सुन लीजिए।
संजीव भट्ट के समय जेल में प्रशासन व्यवस्था, खान-पान, साफ-सफाई,कानून व्यवस्था एकदम दुरस्त थी। संजीव भट्ट का व्यवहार इतना मानवीय था कि कैदी उन्हें वहां से जाने ही नहीं देना चाहते थे।

अब सोचने वाली बात है कि उसी ईमानदार पुलिस अफसर को एक कैदी को टॉर्चर करने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई जा रही है!

क्या इसे पचाना थोड़ा मुश्किल नहीं है ? 

इसे समझने के लिए वक्त के पुराने पर्दे गिराने होंगे। दरअसल जिस केस में 30 साल बाद संजीव भट्ट को सजा सुनाई गई है उस केस में 25 साल पहले यानी 1995 में सीआईडी की जांच में संजीव निर्दोष पाए गए थे। जिसके बाद इस मुकदमें में आगे की सुनवाई पर गुजरात हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। 1995 से 2011 तक ये केस नेपथ्य में ही पड़ा हुआ था।

लेकिन 2011 में जैसे ही आईपीएस संजीव भट्ट ने गुजरात दंगों से संबंधित मामलों में साहब की भूमिका पर अदालत में हलफनामा सौंपा, उसी शाम संजीव को सबक सिखाने के लिए साहब ने 21 साल पुराने इस केस को दोबारा से बाहर निकाल लिया। हलफनामें के अनुसार गोधरा कांड के बाद साहब के आवास पर एक बैठक हुई थी जिसमें संजीव भट्ट भी शामिल थे। साहब ने हिंदुओं को मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए छूट देने की बात कही थी। साफ है गुजरात दंगों में साहब का हाथ होने की बात संजीवभट्ट ने अदालत में कही। इसके बाद ही संजीव भट्ट हमारे साहब और मोटा भाई की नजरों में चढ़ गए।

नतीजा आपके सामने है। 

इससे पहले गुजरात दंगों के मामलों जांच करने वाले जस्टिस लोया, सहाबुद्दीन की हत्या हो ही चुकी है। 

केवल एक बात पर गौर करिए कि जिस एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के लिए जेल के हजारों कैदी भूखहड़ताल पर चले जा रहे हों उसे एक कैदी को टॉर्चर करने के लिए उम्रकैद की सजा दी जा रही है। आपको बता दूं कि गुजरात में 1995 से लेकर 2012 तक पुलिस कस्टडी में 180 कैदियों की मौत हो चुकी है। लेकिन संजीवभट्ट पहले ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें सजा दी जा रही है वह भी छोटी मोटी नहीं उम्रकैद की।

बाकी का खेल आप समझते रहिए। गुत्थियों को सुलझाते रहिए। #sach ke liye awaj uthao
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