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Jitendra Kumar Som
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का एक बार कक्षा दस की हिंदी शिक्षिका अपने छात्र को मुहावरे सिखा रही थी। तभी कक्षा एक मुहावरे पर आ पहुँची “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का ”, इसका अर्थ किसी भी छात्र को समझ नहीं आ रहा था। इसीलिए अपने छात्र को और अच्छी तरह से समझाने के लिए शिक्षिका ने अपने छात्र को एक कहानी के रूप में उदाहरण देना उचित समझा। उन्होंने अपने छात्र को कहानी कहना शुरू किया, ” कई साल पहले सज्जनपुर नामक नगर में राजू नाम का लड़का रहता था, वह एक बहुत ही अच्छा क्रिकेटर था। वह इतना अच्छा खिलाड़ी था कि उसमे भारतीय क्रिकेट टीम में होने की क्षमता थी। वह क्रिकेट तो खेलता पर उसे दूसरो के कामों में दखल अन्दाजी करना बहुत पसंद था। उसका मन दृढ़ नहीं था जो दूसरे लोग करते थे वह वही करता था। यह देखकर उसकी माँ ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि यह आदत उसे जीवन में कितनी भारी पड़ सकती है पर वह नहीं समझा। समय बीतता गया और उसका अपने काम के बजाय दूसरो के काम में दखल अन्दाजी करने की आदत ज्यादा हो गयी। जभी उससे क्रिकेट का अभ्यास होता था तभी उसके दूसरे दोस्तों को अलग खेलो का अभ्यास रहता था। उसका मन चंचल होने के कारण वह क्रिकेट के अभ्यास के लिए नहीं जाता था बल्कि दूसरे दोस्तों के साथ अन्य अलग-अलग खेल खेलने जाता था। उसकी यह आदत उसका आगे बहुत ही भारी पड़ी, कुछ ही दिनों के बाद नगर में ऐलान किया गया नगर में सभी खेलों के लिए एक चयन होगा जिसमे जो भी चुना जाएगा उसे भारत के राष्ट्रीय दल में खेलने को मिल सकता है। सभी यह सुनकर बहुत ही खुश हुए ओर वहीं दिन से सभी अपने खेल में चुनने के लिए जी-जान से मेहनत करने लगे, सभी के पास सिर्फ दो दिन थे। राजू ने भी अपना अभ्यास शुरू किया पर पिछले कुछ दिनों से अपने खेल के अभ्यास में जाने की बजाय दूसरो के खेल के अभ्यास में जाने के कारण उसने अपने शानदार फॉर्म खो दिया था। दो दिन के बाद चयन का समय आया राजू ने खूब कोशिश की पर अभ्यास की कमी के कारण वह अपना शानदार प्रदर्शन नहीं दिखा पाया और उसका चयन नहीं हुआ, वह दूसरे खेलों में भी चयन न हुआ क्योंकि व़े सब खेल उसे सिर्फ थोड़ा आते थे ओर किसी भी खेल में वह माहिर नहीं था। जिसके कारण वह कोई भी खेल में चयन नहीं हुआ और उसके जो सभी दूसरे दोस्त थे उनका कोई न कोई खेल में चयन हो गया क्योंकि वे दिन रात मेहनत करते थे।अंत में राजू को अपने सिर पर हाथ रखकर बैठना पड़ा और वह धोबी के कुत्ते की तरह बन गया जो न घर का होता है न घाट का।” इसी तरह इस कहानी के माध्यम से सभी बच्चों को इस मुहावरे का मतलब पता चल गया। शिक्षिका को अपने छात्रों को एक ही सन्देश पहुँचाना था कि व़े जीवन में जो कुछ भी करे सिर्फ उसी में ध्यान दे और दूसरो से विचिलित न हो वरना वह धोबी के कुत्ते की तरह बन जाएगे जो न घर का न घाट का होता है। ©Jitendra Kumar Som #walkingalone धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का
Akash Sharma
आज की कहानी बहुत ही मोटिवेशनल है | दीपक नाम का एक लड़का था जो की फूटबाल बहुत ही अच्छा खेलता था , लेकिन उसका मन कही एक जगह तो लगता ही नहीं था | वह वही काम बहुत ज्यादा करता था , जो दूसरे लोग करते थे | कभी वह फूटबाल खेलता था और कभी वह क्रिकेट खेलता था , उसको खुद नहीं पता था की करना क्या है और होना क्या है |एक दिन की बात है की कुछ दोस्त न्यूज़ पेपर लेकर पढ़ रहे थे , उसमे लिखा था की जिला अस्तर पर कुछ खिलाड़ियों का चयन होंगे एक हप्ते बाद | दीपक ने भी यह न्यूज़ सुना और बोला इस बार तो मेरा सिलेक्शन तो पक्का है | सब लोग अपनी पूरी तैयारी मे लग गए , दीपक भी अपनी तैयारी करने लगा और उसक मन तो एक जगह लगता नहीं था | कभी क्रिकेट की प्रैक्टिस तो कभी फूटबाल की , सब लोग बोलते नहीं एक ही कर | पर उसको लगता था की वह खुद दोनों मे सेलेक्ट होगा | ट्रायल सुरु हुवा , सब लोग अपना – अपना ट्रायल देना सुरु कर दिया | ट्रायल के बाद रिजल्ट जब आया तो दीपक के काफी सारे दोस्त सेलेक्ट हो गए और दीपक ने दोनों मे ट्रायल दिया था और उसका नाम किसी मे भी नहीं आया | यह सुनकर दीपक बहुत ही रोया और खुद निस्चय किया की आज के बाद जो भी काम करूँगा मन लगाकर और अंत तक करूँगा | इस कहानी से हम लोगो को यही सीख मिलता है की आप लोगो को जीवन मे जो भी काम करना है , सिर्फ और सिर्फ अपना पूरा ध्यान उसपर लगा दो , तभी आप सफल हो पावोगे | नहीं तो आप भी दुसरो का देख कर करोगे तो आप का भी यही हाल होगा की न आप यहाँ कुछ कर पावोगे और न आप कही और कुछ कर पावोगे | जो एक बार सोच लिया जबतक वह मिल न जाये तबतक काम करो , क्युकी जो चीज बहुत ही मुश्किल के बाद मिलती है उसका मजा ही कुछ और है | मेहनत करो , फल आप को जरूर एक न एक दिन जरूर मिलेगा | ©Akash Sharma धोबी का कुत्ता न घर का और न घाट का |सीख देने वाली कहानी ####1 #Joker
Arpit tejash
घाट घाट का पानी पी के आया हूं । घास फूस के छप्पर सा मैं छाया हूं। जो सबको कंपा दूं ऐसा प्यारा झटका हूं। ना जाने क्यों लोगों की आंखो में मैं खटका हूं। बहा के लहू कांटो में मैं चल सकता हू। सूखी डाली सा पेंडो में मैं लटका हूं। जो लहू बहाते उनको समझाने आया हूं। घाट घाट का पानी पी के आया हूं ।। घाट घाट का पानी
Krishna Bhoi
टीचरः धोबी का कूत्ता ना घर का ना घाट का ऐसा ही ऐक और सन्टैनस बनाओ स्टुडेन्टः सानीया का बच्चा ना भारत का ना पाकिस्तान का टीचर बेहोश😂😂 ©Krishna Bhoi टीचरः धोबी का कूत्ता ना घर
Manas
क्या आप रहस्य और रोमांचक कहानी, घाट 84, रिश्तों का पोस्टमार्टम पढ़ना चाहेंगे #घाट-84