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Lalit Saxena
हमने ख़ुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है सांस-सांस पीर कसमसाती रहती मुर्दा सपने पांवपांव चलते देखा है उगते सूरज के जलवे देखे हर दिन उदास शाम को भी उतरते देखा है ख़्वाहिशें, सारे ही रंग उतार देती है उम्रदराज़ को भी, मचलते देखा है दरवाजे पर नहीं कोई दस्तक हुई हर सुब्ह उन्हें वैसे गुज़रते देखा है दिन बुरे हों, तो ये दरिया भी सूखे बुलंदियों को भी, बिखरते देखा है ©Lalit Saxena ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moreParasram Arora
Unsplash क्या किसी के दर्द क़ी लयबद्द तरंगे तुमने कभी देखी है उठते हुए? कभी किसी प्रेम गीत को लिखने के लिए कभी तुमने व्याकर्णन का उपयोग करके देखा है क्या? ©Parasram Arora व्याकरण का उपयोग
व्याकरण का उपयोग
read moreRAMLALIT NIRALA
White किस्मत से मीलते हैं वो लोग आपना और अपने बीबी के साथ साथ मम्मी पापा भाई बहन दोस्तो का भी ख्याल रखते है खुद मुसीबतों मे रह कर दुसरो का हाल पुछते है तुम कैसे हो विदेश मे यार गम को छुपाना पडता है लबो को मुस्कुराना पडता है ©RAMLALIT NIRALA जो है उसका कदर करना सिखो
जो है उसका कदर करना सिखो
read moreHimaani
White ।।उसका इश्क ऐसा था ।। कि मुझे कभी कॉल मत करना कि मुझे कभी मैसेज मत करना मेरे बिस्तर तक आना है तो आ फिर चाहे तू मुझसे रोज बात करना ©Himaani #sad_shayari उसका इश्क ऐसा था लव स्टोरी
#sad_shayari उसका इश्क ऐसा था लव स्टोरी
read moresc_ki_sines
White जीना हैं अकेले फिर भी लोगों के पीछे दुख के मेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों हम अब भी अकेले हैं जलते हैं अकेले ही यादों के दरिया में भी बुझती नहीं वो आग तफ़्दिशे जलन भी झेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों मगर और भी अकेले हैं नसीब का लिखा वो ही जाने तक़दीर का दिया हुआ दर्द_ए _नसीब हम ने भी झेले है अब इस के बाद न जाने नसीब में क्या है ना आओ साथ हमारे जिंदगी में हमारे बहुत झमेले हैं ना याद आते अब वो लम्हे ना याद आते हो तुम कभी इस कदर मेरे सफ़र में ओ मुसाफ़िर कि अब तन्हाई इस कदर मेरी यादों में घुल गई कि ना अब कोई मिलता ना अब कभी बिछड़ता शायद अब हम अपने आप से भी नहीं मिलते कि अब हम अपने ध्यान से उतरे हुए से आसुओं के रेले हैं के ना अब कभी कहना मुझसे कि साथ चलने को तुम्हारे हम अपना सब कुछ छोड़ चलते हैं अब ना मिलेंगे हम ना वो हमारी मोहब्बत मिलेंगे तो सिर्फ हम और हमारी तन्हाई जिसको दिया तुमने और हमने वो जख्म सदियों से झेले है फिर ये खेल ना खेलो हमारे साथ समझ जरा ज़ख्मी हु और टूटे हुए इस कदर की फ़िर ना जुड़ सकू दोबारा जो खेल लोगों ने सदियों से खेले हैं मत आजमा ए ज़ालिम कि आवाज़ तक नहीं आएगी मेरे दर्द कि हम अब अकेले बहुत अकेले हैं ©Sonuzwrites #good_night ग़ज़ल ✍️
#good_night ग़ज़ल ✍️
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