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Mukesh Boliwal
राहुल ने ममता बनर्जी से कहाँ ... राहुल बोले ममता दीदी इतने ड्रामे कैसे कर लेती हो ज़रा हमे भी सिखाइये.. एक गोटाले ओर एक इंसान को बचाने में धरने पे उत्तर आई हो ... मेरा भी कुछ सोचिये मेने तो किये ना जाने कितने मेरे पूरे खानदान को बचाइये ... #NojotoQuote राहुल का भूरा हाल ...
Shree Roi
शायाद आज का दिन भी उदास और बेकर ही जाना था शायद इसी लिए इतना भूरा हुआ है यूं हर रोज भूरा होना क्या जरूरी हैं हम अच्छे दिन राह देख थक चुके है... ©Shree Roi #Shajar आज भी कुछ भूरा...
ACTOR SANDEEP PREMi YADAV
Swatantra Kumar Singh
सियाह ज़ुल्फ़ें सुर्ख़ लब और कत्थई नज़रें 'क़ासिद' कौन कम्बख़त कहता है ज़िन्दगी रंगीन नहीं होती सियाह - Black - काला सुर्ख़ - Red - लाल कत्थई - Brown - भूरा #YQbaba #YQdidi #YQbhaijan #Love #Life #Truth #Thought #Myth
Waffa की तलाश ..waffaon के साथ... A दिल... मुझको तू चाहिए
एक बात कहूं मै जब चाहे अखें बंद करके तुम्हे देख सकता हूं पर अफसोस तुम तो इस के लिए भी तरसोगी पता है क्यू क्यू के प्यार सिर्फ मैंने ही किया था तुमने नहीं Waffa की तलाश... आज मुझे खुद पर फर्क और तुम पे तरस आता है क्यू के मैंने कभी भी किसी का भूरा नहीं चाहा 😔😢💔
Anuradha Vishwakarma
डूरंड रेखा पाकिस्तान व अफगानिस्तान के मध्य हैं. (वर्तमान समय में) अफगानिस्तान और भारत के बीच हुआ करती थी . भूराजनैतिक तथा भूरणनीति की दृष्टि से डूरण्ड रेखा को विश्व की सबसे खतरनाक सीमा माना जाता है। अफगानिस्तन इस सीमा को अस्वीकार करता रहा है। jhankiom vishwakarma #Morning डूरंड रेखा पाकिस्तान व अफगानिस्तान के मध्य हैं. (वर्तमान समय में) अफगानिस्तान और भारत के बीच हुआ करती थी . भूराजनैतिक तथा भूरणन
Harshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जोगी दिल में भोगी हुआ , भस्म खाकर या मिट्टी के जिस्म पर लगाकर बैरागी हुआ, बेरंग रगों में भूरा सा आदमी नहीं प्यास से भारी लकीरों पे, निशान छोड़ ता एक असीम गहरा असर देता आत्म विलीन हुआ। #lifequotes #zindagi #yqbaba #yqdidi #yqsahitya Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जोगी दिल में भोगी हुआ , भस्म खाकर या मिट्टी के जिस्म पर
Abhimanyu Kamlesh Rana
पहली बरसात की महक सी थी वो मुलाकात करीब आया एक अज्ञात बहुत करीब उसकी सांसों की ध्वनि कानों में जो गई मैं मृगतृष्णा में खो गई उसकी बाहों में आत्मसमर्पण कर दिया ऐसे बीज धरती में करता है जैसे फिर खिल उठने की चाह में पर बेपरवाह वो रेत बह निकली जलप्रवाह में कहीं और किसी और बीज की उम्मीद जगाने फिर वही किस्सा दोहराने सावन के मौसम में ना जाने क्या है ऐसा उन आंखों का भूरा रंग दिखा हरा जैसा ।।।। - अभिमन्यु "कमलेश" राणा ।।।। पहली बरसात की महक सी थी वो मुलाकात करीब आया एक अज्ञात बहुत करीब उसकी सांसों की ध्वनि कानों में जो गई मैं मृगतृष्णा में खो गई उसकी बाहों में