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Dr Jayanti Pandey
हे दिल्ली के मालिक! इतने भी मासूम न बन जाइए हर दस मिनट पर विज्ञापन में तो मत नज़र आइए माना आपने दिल्ली वालों को छोड़ दिया मरने को कम से कम अपनी शक्ल दिखाकर तो मत चिढा़इए ये जो उम्मीद बन कर आया था आते ही धूमकेतु सा छाया था विषधर निकला यह तो काला और जनता ही बनी निवाला मीडिया को ख़रीद लिया ऐड देकर आक्सीजन की
AK__Alfaaz..
जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही, काल के प्रहार से विघटित, विस्मृत उम्र मेरी, रूढ़ियों के पौरुष से चिरप्रसूतिका मै, कभी कोई, अभिलाषा नही करूँगी गर्भित, ना जन्मूंगी श्वाँस मात्र लिप्सा अपनी, पालने की रिक्तता, पुकारेगी मेरी ममता, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रेहन_ईप्सा जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही,
vishwadeepak
स्वयं की खोज .... एक राज्य जिसका नाम कौशांबी था। जिसका राजा धूमकेतु, बहुत घमंडी यानी बिना उसकी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था और वह यह भी सोचता था कि, उसकी प्रजा उससे बहुत खुश है और उसकी प्रजा उसका भला चाहती है। उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोल सकती है और न ही सुन सकती है, क्योंकि राजा जहाँ-जहाँ देखता था, उसे खुशहाली ही नज़र आती थी। उसे कहीं भी किसी का दुःख नहीं दिखाई देता था। लेकिन राजा यह भी जानना चाहता था कि, सच्चाई क्या है? क्या सभी लोग सच में खुश हैं? क्या सच में, मैं इतना महान हूँ? अगर मैं महान हूँ? तो मैं भगवान क्यों नहीं हूँ? और क्या मैं भगवान बन सकता हूँ? यही सब सोंचते हुए उसने इन सब बातों को जानने का फैसला किया। एक दिन उसने अपने बीमार पड़ने की खबर पूरे राज्य में पहुंचा दी और कहलवाया कि, राजा बचेगा नहीं। जिसके लिए सभी प्रजाजन उसकी सलामती की दुवा करें। और राजा खुद साधू का वेश धारण करके अपनी प्रजा के बीच जा पहुंचा। साधू के वेश में उसे कोई पहचान न सका। साधू के वेश में राजा महल के बाहर खड़े लोगों के बीच पहुंचा और वहाँ लगी भीड़ का कारण पूछा। वहाँ के लोगों ने बताया कि, “राजा की तबियत बहुत ख़राब है। वह मृत्युशय्या पे पड़ा है। उनके ठीक होने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती।” इस बात पर साधू ने कहा कि, “अच्छा तो तुम सब उनकी जान की सलामती के लिए दुवा करने के लिए एकत्र हुए हो।” इस बात पर प्रजा में से एक व्यक्ति बोला, “काहे की दुवा। कल का मरता आज मार जाए।” साधू के वेश में राजा को, बहुत क्रोध आ रहा था। लेकिन पोल न खुले (और हकीकत पता चलने तक) इसलिए वह अपने क्रोध पर काबू रखते हुए बोला, “ऐसा क्यूँ कहते हो, भाई? वह तुम्हारा राजा है और उसकी अच्छाई के किस्से तो दूर-दूर तक चर्चित हैं।” इस बात पर प्रजा ने एक-एक करके बोलना शुरू किया। “कहाँ? काहे की अच्छाई? यह राजा बहुत ही क्रूर और निर्दयी है। यह हमें चैन से जीने तो क्या, मरने भी नहीं देता है।” इस बात पर साधू ने कहा, “ऐसा क्या हुआ है, आप लोगों के साथ? जो आप लोग इतना नाराज हैं, अपने राजा से?” इस बात पर प्रजा बोली कि, “राजा हम पर नित्य नए-नए नियम लगा देता है। हम एक कार्य कर नहीं पाते, दूसरा सौंप दिया जाता है। खेती बाड़ी से जो अन्न पैदा करते हैं, उन्हें राजा आधा हिस्सा बताकर रख लेता है। साथ ही हमारी जमीन पर 'कर' भी लगाता है। अगर हम अच्छे - अच्छे वस्त्र पहनते हैं, अच्छा खाते हैं, तो राजा हमें इस बात पर दंडित करता है। यदि कोई मर जाता है, तो श्मशान में जलाने तक के लिए 'कर' लिया जाता है। अगर हम जानवर खरीद कर लाते हैं, तो जानवरों पर भी 'कर' वसूलता है। राजा के मंत्री भी हर प्रकार की वस्तुओं पर अलग से 'कर' वसूलते हैं। इन सब वजहों से हम सब बहुत दुःखी हैं और इसी वजह से राजा की मृत्यु का समाचार सुनने के लिए यहाँ प्रर्थना करने आए हैं। यदि ऐसा होता है, तो शायद नया राजा, जो हमारे राजा का पुत्र है, के राजा बनने पर हम सब बहुत खुश होंगे, क्योंकि वह बाल्यावस्था से ही प्रजाप्रेमी है और शायद उसके राजा बनने पर हमारा भाग्य बदल जाए। हम सब चैन से रह सकें।” यह सब सुनकर साधू ने कहा, “तुम लोग सही कहते हो। ऐसे राजा का मर जाना ही ठीक है”, और यह कहकर साधू राजमहल में वापस आ जाता है और रातभर विचार करने के बाद। अगले दिन सुबह वह अपनी मृत्यु की घोषणा करवा देता है। जिसे सुनकर प्रजा उदासी का दिखावा करती है, मगर मन ही मन बहुत प्रसन्न होती है और खुशी से झूम उठती है। यह सब राजा, साधू के वेश में देख रहा होता है और खुद से कहता है कि, “ मेरा घमंड टूट गया। एक इंसान की बदौलत पृथ्वी नहीं चल सकती। इसको मानवता की जरूरत है। अगर मैं नहीं भी रहूँगा, तो किसी को कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा। जबतक मैं कुछ अच्छे कर्म नहीं कर जाता हूँ। इसलिए मुझे आज और इसी वक्त से बदलना होगा।” साधू ने प्रजावासियों से पूछा कि, “क्या आप सब की प्रार्थना पूरी हो गई? सबने एक स्वर में कहा 'हाँ'।” इस बात पर साधू ने पूछा, “यदि राजा आप पर इतने अत्याचार न करता, तो क्या आप उनकी सलामती की दुवा करते?” इस बात पर सबने कहा कि, “तब वो हमारे दिलों में बसते और हम पर राज करते हमेशा। उन्हें बचाने के लिए हम सब अपने प्राणों की जरूरत पड़ने पर न्यौछावर कर देते।” इन सब बातों का साधू बने राजा पर गहरा असर हुआ और वे लज्जित होकर वापस महल आ गए। महल पहुँचकर उन्होंने घोषणा की, की राजा को कुछ नहीं हुआ। वह स्वस्थ हैं और आज से उन्हें एक नया जीवन मिला है। वह अपनी प्रजा की देखभाल स्वयं करेंगे, प्रजा पर लगे सभी कर्ज माफ़ होंगे। अब उनके शासन काल में प्रजा को कोई दुःख, तकलीफ़ नहीं होगी। कोई भी भोली-भाली जनता को सताएगा नहीं। अगर प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट होगा, तो वह सीधा राजा से आकर अपने कष्टों का निवारण करेगा। इन सब बातों को सुनकर प्रजा खुशी से झूम उठी और नाचने-गाने लगी। एक व्यक्ति ने कहा कि, “जो साधू हमारे बीच आए थे। वे और कोई नहीं हमारे राजा जी थे। जिन्हें हम पहचान न सके। वो हमारे बीच हमारा हाल जानने के लिए आए थे। हमने उन्हें हमेशा गलत समझ, लेकिन वे तो कुछ और ही निकले। धन्य हो ऐसे हमारे अन्नदाता।” इस प्रकार राजा ने खुद को सर्वोपरि मानना छोड़ दिया और खुशी-खुशी प्रजा की सेवा करने लगे और कई वर्षों तक राज किया। राजा की दयालुता के कारण आज भी लोग उन्हें याद करतें हैं। खुद का घमंड तोड़ना हो, तो खुद का वेश बदलकर देखो। सच्चाई का पता भी लग जाएगा कि दुनिया में तुम्हारी क्या बिसात है? ‘यहीं से कहानी समाप्त हो जाती है।‘ ‘THE END’ ©vishwadeepak #beingoriginal #स्वयं की खोज .... एक राज्य जिसका नाम कौशांबी था। जिसका राजा धूमकेतु, बहुत घमंडी यानी बिना उसकी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं ह