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Parasram Arora
आदि काल से बहती आई है ये नदिया. इसीके आँगन मे मैं जन्मा खेला कूदा बड़ा हुआ न जाने कहाँ है इसका स्त्रोत और कहा होगा इसका. अंत सुना है सागर मे ही है कहीं इसका विश्राम स्थल है इस नदी से मैं इसकी गाथा इसीकी जुबानी सुन चुका हूँ और अपनी आप बीती भी इससे साझा कर चुका हूँ कितना करता हूँ मैं प्यार इससे कि इसके सांध्य दर्शन मे मैं सब कुछ भूल जांता हूँऔर तभी दो हाथ मौन समाधि मे इसके लिए स्वतः जुड़ जाते है और ये नदी भी मेरा मौन प्रेम और समर्पण स्वीकार कर लेती है मेरी भी अभीप्सा है. इसके विश्राम स्थल तक मैं इसका हमसफऱ बना रहूँ और इसे. नदी से सागर बनता हुआ देख सकूँ और अच्छा तो यही होगा कि मैं भी इसके साथ ही जल समाधी लूँ ©Parasram Arora जल समाधि
Arora PR
वो सागर उस उफनती नदी को. अपनी ओर आते देख अपनी किस्मत पर नाज़ कर रहा है. वो खुश है कि उस नदी को जल समाधि दिलाने के लिये. ईश्वर ने उसे चुना है ©Arora PR जल समाधि
Vivek
मन के समाधि सिंधु में ----मुस्कान तुम्हारा भाव है ----शांति तुम्हारी कविता है ----प्रकाश तुम्हारा प्रभाव है ----!!! ©Vivek #समाधि #मुस्कान
Myearning com
दुःख त्या मरणाचं नाही वाटत मला नाही भीत मी त्या मृत्यूच्या वाटेला... कळुन चुकलंय..आता दुःख आणि मृत्यू खरं सांगु दोघे नात्याने सख्खे भाऊच असतात. जीवन या सावत्र भावास दोघेही छळतात. दुःख, मृत्यू, जीवन आयुष्याभोवतीच वावरतात.. लेखक कवी -किरण शिंदे ©Myearning com मरण@#
Parasram Arora
एक कली नन्ही सीi. इतराई थी अपनी गंध भरी देह देख कर आज वह विवशता के झांसे मे हा जा फंसी आया था भ्र्मर रसविहीन कर गया था उसे औऱ रवि किरणों ने शुष्कतकीओर ढकेल दिया उसे.... सुबह ही तो जन्मी थी कितनी प्रसन्न थी वो हाय जीवन उसका नष्ट हुआ ऐसी ये क्या शाम हुईं यहां हरचीज बनती औऱ बिगड़ती हैँ सत्तत प्रवाह हैँ कुछभी यहां स्थिर नहीं....... मरण धर्मा.....