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Gokuksingh Rathore
White वो दिन भी क्या जो आपको याद नहीं कीया भूल कर भी आपने हमें याद नहीं कीया ©Gokuksingh Rathore #GoodMorning भूल गये वो दिन जहां आपने हम को पाया था हमें सब याद है वो दिन जहां हम एक साथ खाना खाया था और उस होटल बिल मेने दिया था क्योंकि आप
itz priyanshu
White "इंतज़ार नहीं किसी रानी का अब हम" "बताएंगे" "रुतबा क्या होता है जवानी का" ©Rajaram Pandit #SunSet अब हम बताएंगे रुतबा क्या है जवानी का
Das Sumit Malhotra Sheetal
Ashutosh Mishra
White छल गया छलिया छल से मुझे,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं जान कर भी अंजान रहा वो क्या जाने ,,,,,,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,इस हार में भी जीत है मेरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अल्फ़ाज मेरे✍️🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #mountain छल गया छलिया छल से मुझे मैं जाकर भी अंजान रहा वो क्या जाने,,,,, इस हार मे भी जीत है मेरी। #छल #छलिया KRISHNA Vaibhav's Poetry R
Mohit Kumar Goyal
Ashish Singh
Devesh Dixit
जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़, देखो बढ़ने लगे हैं अब। नज़रअंदाज़ किया उनको, जिसने भी कांँटे बोए हैं। क्या कहें अब हम उनको, वे खुद ही कर्मों पर रोए हैं। उन्हें उनके हाल पर छोड़, सपने बुनने लगे हैं अब। उन सपनों को अपने जोड़, देखो जीने लगे हैं अब। क्यों करनी है उनकी चिंता, उनसे क्या सरोकार है अब। नकाब के पीछे है जो चेहरा, उन पर कहाँ एतबार है अब। आशाओं को जो हटाया, देखो जीने लगे हैं अब। स्वयं को फिर सुदृढ़ पाया, और संवरने लगे हैं अब। ..................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #जीने_लगें_हैं_अब #nojotohindi #nojotohindipoetry जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़,
Royal Jaat
पास नहीं हो फिर भी तुम्हें प्यार करते हैं देखकर तस्वीर तुम्हारी तुम्हें याद करते हैं दिल में इतनी तडप है कि हर वक्त तेरे मिलने की फरियाद करते हैं ©Royal Jaat क्या लिखूं कोई लब्ज़ नही है
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।