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Hardeep Singh khundia
White बेकाबू रहा समय का यह सफर, फिर जिंदगी की मार ने जो मारा, हम नहीं जान पाए समय की चाल, फिर जिंदगी में आया तूफान , हमने उसी को पहचाना, इश्क के प्रस्ताव, प्रेम के निबंध, प्यार की कविताएं, स्नेह के पत्र, ना ही हमने लिखे चाहत थी मिलने की पर बेकाबू रहा समय का सफर लिखी चिट्ठियां मिली हमें कूड़ेदान में प्यार पर कविताएं लिखी प्रेम पर निबंध लिखें बहुत से लोगों ने इस जहान में बांटते चलो प्रेम का प्याला फिर हम स्नेह के लिए क्या बांटे क्या बांटे हम प्यार के लिए दुश्मन से प्यार के हिजार में क्या बांटे समय पर रहे यार के प्यार में क्या बांटे बांटे हम फूलों की सुगंध तो कांटों के प्यार में क्या बांटे बांटे अगर हम जहर के प्याले तो अपनों के दीदार में हम क्या बांटे बेकाबू रहा समय का यह सफर, फिर जिंदगी की मार ने जो मारा, हम नहीं जान पाए समय की चाल, फिर जिंदगी में आया तूफान , हमने उसी को पहचाना, ©Hardeep Singh khundia बेकाबू यहां समय का सफर
ब्रJESH Chanद्रा
Anuj Ray
White कौन नहीं है मजदूर यहां पर" खुशी खुशी लगा के हाजरी दरबार में उसके,शान से सब टेकते हैं मत्था। कोई अकेला ही कतारों में खड़ा दिखता है, किसी के साथ है पूरा जत्था। वो एक ही मालिक है जहांन का सारे, किए हुए हैं सबको काम के बंटवारे। कोई मंत्री है यहां पर तो सिपाह सलार है कोई, दरोगा ओ चौकीदार काम सबके न्यारे। बना के फूल की मलाई भेजता है कोई , चढ़ा के फूल उसके चरणों में कोई आरती उतारे। नजर का धोखा है संसार यहां पर, ऐसा कौन है उसका, जो मजदूर नहीं है यहां पर। ©Anuj Ray # कौन नहीं है मजदूर यहां पर"
Poetry-Meri Diary Se
White अक्सर यही होता हैँ के जब मैं हार जाता हूँ, तब सब से खुद को जुदा और तन्हा पता हूँ! ये किस्मत का खेल हैँ या मेरी तक़दीर का लेखा जोखा, मतलब परस्त की दुनियाँ में आज यारों! मैं बहुत अकेला हों गया इतना की, आज साया भी अब मेरे साथ नहीं! ©ABi Aman #Moon अक्सर यहीं होता हैँ@#
Himaani
चाहे रिश्ता कितना भी खास हो. उसे रिश्ते में आपका अपमान हो रहा है तो उसे रिश्ते को त्याग में हीं आपकी भलाई है ©Himaani यहां सम्मान नहीं वहां रुकना नहीं
ranjit Kumar rathour
कितना मुश्किल होता है नए रिश्तों का बनना और आखिरी सांस तक निभाना सोचता हूँ तो सिहर जाता हूँ क्योंकि सवाल सोचता ही क्यों हूँ सोचना होता है आज मबहन की शादी है कल बेटी को भी विदाई होगी जब किसी को लाया था घर अपने तब शायद नही सोच पाया था आज लगता है जिगर का टुकड़ा अनजान के हाथों सौप रहा हूँ मगर सिर्फ फफक सकता हूँ रोक नही सकता क्योंकि यही परंपरा है यही है दस्तूर हा यही है दस्तूर ©ranjit Kumar rathour यही है दस्तूर
Jesus_ka_chuna_huaa
Bharat Bhushan pathak
ढाल बन यह यहाँ। रक्षित करे ये जहाँ। आन बान शान है। इससे ही पहचान है। ©Bharat Bhushan pathak #mountainsnearme ढाल बन यह यहाँ। रक्षित करे ये जहाँ।