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Sheel Sahab
White The Mountain = Everest The mountain Man = Dasrath Manjhi ©Sheel Sahab #mountain #trending #nojotoofficial #nojatoshayari saadahmad munni sethiji pratibha sharma comedy dildigalla adgrk internetjockey jeetbajwa
ज़हर
ज़हर वो अपने बंद कमरे में बैठ कर सिसक रहा होगा मैं उसके सामने से हवा में हाथ हिला कर चली आई ©ज़हर ज़हर वो अपने बंद कमरे में बैठ कर सिसक रहा होगा मैं उसके सामने से हवा में हाथ हिला कर चली आई #yaadein #ज़हर h Sethi Ji sana naaz Manpree
Munni
White ''mera iss qadar uske jindegi se yun hi nikal jana mehej ek ittefaq keh layega.. magar.. mere jaane se usey thora bhi dukh na hoga , sayed usey isi pall ka barson se intejar hoga...'' ©Munni #SAD #Mehez ittefaq kehlayega... @ Raj_Xoxo KK क्षत्राणी Ak.writer_2.0 SK.. S.V SINGH Sheel Sahab 0 Niaz (Harf) sana naaz babban Maaahi..
संवेदिता "सायबा"
हे आदिशक्ति जगजननी मां..... ©संवेदिता "सायबा" https://youtu.be/V8ECWZaQ2ZQ?si=KahU22kGciDycLEj पूरा भजन सुनें...💐🙏 #navratri Niaz (Harf) कवि आलोक मिश्र "दीपक" "सीमा"अमन सिंह पंडित नरे
संवेदिता "सायबा"
संवेदिता "सायबा"
Life Like गर्दिश में सम्भलने का हुनर सीख रहें हैं। हम वक्त बदलने का हुनर सीख रहें हैं। उतका गये है खेल-ए-सियासी से दरअसल। हम जंग-ए-रियासत में बसर सीख रहें हैं। रुकने नहीं देता हमें दुश्वारियों में वो। एक नाम तेरा लेके ज़फ़र सीख रहें हैं। चेहरे पे मुखौटा नहीं आता है लगाना। आईने से अब ज़ौक़-ए-नज़र सीख रहें हैं। #WORLD POETRY DAY ©संवेदिता "सायबा" #World_Poetry_Day #samvedita #Poetry #Gazal #Shayari #Lifelike Niaz (Harf) "सीमा"अमन सिंह Pyare ji उत्कर्ष शुक्ल UK कवि आलोक मिश्र "दीप
Hema Shakya
प्रेम कस्तूरी के समान ही है। होता खुद में ही है, पर ढूंढ़ते औरो में है। ©Hema Shakya #kasturi_mrig #Prem #hemashakyaquotes #hemashakyastories #hemashakya #hema_thedreamfairy Parul (kiran)Yadav Niaz (Harf) dilbar saheb कवि आलो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Blue Moon ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२ मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं रास्ता दूँगा । खबर ही थी नहीं ये की निशाना आज भी हूँ मैं ।।३ न जाने क्यूँ कदम मेरे खिचें यूँ ही चले जाते । कोई बतला मुझे ये दे मिटा क्या आज भी हूँ मैं ।।४ जुदा होकर भी उनसे क्या कहूँ दिल की तमन्ना को दिया सा राह में ये दिल जलाता आज भी हूँ मैं ।।५ खिलौना वह समझकर जिस तरह मुझ से यहाँ खेलें । उन्हीं से यार अब रिश्ता निभाता आज भी हूँ मैं ।।६ सुना दो तुम प्रखर अब तो खबर उस बेवफ़ा की कुछ । यहाँ जिसके लिए आसूँ बहाता आज भी हूँ मैं ।।७ १६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । म