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Aklesh Yadav

कान पर जूं तक न रेंगना #विचार

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Deep Kush

लौ में धधक आज भी है कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार पर रुकुंगा नही थक हार कर ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है मुझे #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqdada #yqhindi

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लौ में धधक आज भी है 
कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है
असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार
पर रुकुंगा नहीं थक हार कर
ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है
मुझे चलना है बस चलना है 
चलते चलते गिर भी गया तो रेंगना है 
मुझे रुंकना नही है बस रुंकना नही है
पा लेना है एक दिन मंजिल को 
खुद को इस हद तक तपाना है
अगर नही भी हो मंजिल किस्मत में 
तो उस ऊपर वाले से लड़ उसे छीन लाना है
मुझे खुद को इस काबिल बनाना है
मुझे चलना है बस चलते जाना है.......






 लौ में धधक आज भी है 
कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है
असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार
पर रुकुंगा नही थक हार कर
ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है
मुझे

Author Munesh sharma 'Nirjhara'

#mनिर्झरा जो तेरा हौसला है वही तेरा संबल है बढ़ा क़दम आगे तू सारा जहाँ ही तेरा है मुसीबतें आयीं हैं समाधान होगा ही #lifequotes #yqdidi #yqhindi #bestyqhindiquotes #yqlife

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जो तेरा हौसला है
वही तेरा संबल है...
🌹
 #mनिर्झरा 
जो तेरा हौसला है
वही  तेरा संबल है
बढ़ा क़दम आगे तू
सारा जहाँ ही तेरा है

मुसीबतें आयीं हैं
समाधान होगा ही

Shubham Anand Manmeet

ओ कलम! तूं नक्कारखानों की तूती की आवाज मत बन। समर शेष है कुछ अभिधेय है सत्य का उद्घाटन कर।। लड़ना है अन्याय से और लिखना है केवल सत्य।। #AWritersStory

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ओ कलम! 
तूं नक्कारखानों की तूती की आवाज मत बन। 
समर शेष है कुछ अभिधेय है सत्य का उद्घाटन कर।। 
लड़ना है अन्याय से और लिखना है केवल सत्य।। 

ओ कलम! 
जानता हूँ कष्ट पायेगी जब समाज से टकरायेगी। 
लोग करेगें जीना मुहाल कर देगे मेरा बुरा हाल।। 
मगर डरना तूं मत, चाहे टकरा जाये स्वयं काल।। 

ओ कलम! 
लिख भ्रष्टाचार और अनीति लिख विजय का गीत। 
याद कर गीता, बाइबिल और कुरान के उदगीथ।। 
सत्य और तथ्य की हमेशा युद्ध में होती है जीत।। 

ओ कलम! 
देख ले समाज में व्याप्त कुरीति अन्याय की जीत। 
झूठ का बोलबाला और झूठ से लोगों की ये प्रीत।। 
छद्म भेष बनाकर घूमते इंसान दिखते है पाषाण।। 

ओ कलम! 
देख सिंहासनारूढ़ यह सरकार ये स्वार्थी विपक्ष बेकार। 
एक-दूसरे को बेईमान और चोर साबित करने की होड़।। 
सिंहासन के लिए जन हत्या और करते हैं तोड़-फोड़।। 

ओ कलम! 
देख आ रही जन सवारी मगर उसकी है विकट लाचारी। 
सत्य व असत्य का नही भान केवल चाटुकारिता प्रधान।। 
तुम पहले -तुम पहले का राग ,करना नहीं कर्म संधान।। 

ओ कलम! 
जन कीट पतंगें बन रेंगना चाहते हैं सत्य से भागते हैं। 
किसी मसीहा का इंतजार करते हैं और दीन हो रोते है।। 
अपने फर्ज से भागते है व दोष अपने भाग्य को देते हैं।। 

ओ कलम! 
लिख आग धधका दे कायर हृदयों मे एक ज्वाला। 
जगा दे पुरूषार्थ और पौरूष लिख नया अध्याय।। 
जन का जागरण कर ओ कलम , देता हूँ आवाज।

©Shubham Anand Manmeet ओ कलम! 
तूं नक्कारखानों की तूती की आवाज मत बन। 
समर शेष है कुछ अभिधेय है सत्य का उद्घाटन कर।। 
लड़ना है अन्याय से और लिखना है केवल सत्य।।
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