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Amit Seth
Poet Maddy
ये जो नज़रें झुकाकर तुम कत्ल-ए-आम करती हो, इतना संगीन अपराध कैसे तुम सरेआम करती हो...... गर कोई देख ले तुमको कभी ग़लती से इक दफ़ा, तुम पलट कर देखती हो तो काम तमाम करती हो...... ©Poet Maddy ये जो नज़रें झुकाकर तुम कत्ल-ए-आम करती हो, इतना संगीन अपराध कैसे तुम सरेआम करती हो...... #Murder#Eyes#Crime#Publicly#See#ByMistake#LookBack#D
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Black बहुत सुकून में हूं जबसे मुनाफिको का साथ छोड़ दिया सो मैंने झूठों की *शिरकतों का साथ छोड़ दिया//१ उम्मीद थी के वो मुझसे बुगज़ ना रखेंगे,सो मैंने देखी ये अदा तो उनकी फितरतों का साथ छोड़ दिया//२ जो दिलशिकन दिल का कत्ल करे,वो कातिल ही है,सो मैने ऐसो की*अजीयतो का साथ छोड़ दिया//३ तकलीफ जिनसे बरसों बरस के पूर मलाली याराने थे, सो मैंने अब ऐसे अदू की*फहरिस्तो का साथ छोड़ दिया//४ जो थे अपने मुनाफिकत में शुमार,सो "शमा"ने सुकू ए एवज ऐसी *वाहियातो का साथ छोड़ दिया//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Thinking #Nojoto बहुत सुकून में हूं जबसे*मुनाफिको का साथ छोड़ दिया,सो मैंने झूठों की *शिरकतों का साथ छोड़ दिया//१ *धोखेबाज*साझेदारी उम्मीद
Babli Gurjar
मत पूछ इन गुलाबों ने कितने बेदर्दी से कत्ल किए हैं मां की ममता पिता का भरोसा पहले शिकार हुए हैं भाई बहन जो बेहद खास थे जिंदगी से बहार हुए हैं भरोसेमंद दोस्त थे जितने भी बहानों में बीमार हुए हैं चार दिन में सूख गए गुलाब कांटे गिरेबान में फंसे हैं हलकाल है गुलाबों के शिकार जख्म छुपाने में लगे हैं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar कत्ल Rama Maheshwari Mili Saha Sethi Ji Anshu writer Bhardwaj Only Budana Lalit Saxena मरजानो_मनोजियो (The GamePlanner) Ashutosh Mishra As
दीपा साहू "प्रकृति"
ज़िन्दगी से शिकायत कैसी भावनाओं का कत्ल कर उन्हें कब्र में दफ्न करना उतना कठिन भी नहीं ! हाँ कभी-कभी ज़िंदा भी हो जाती है। अरे तो क्या हुआ ! फिर से दफ्न हो ही जाती है ! ओफ्फो.. कौन सी ज़िन्दगी लम्बी है छोटी सी तो बाकी है नम आँखें छुपाकर मुस्कुराहट लबों पे काफ़ी है। ख़ामोशी भी तो है न अच्छी दोस्त, होठो पे खूबसूरत साथी है। कुछ न कहो चुप ही रहो, धड़कने इस बात पे राज़ी है। फिर ज़िन्दगी से शिकायत कैसी? छोड़ो न बस गुज़र ही जाती है। ©दीपा साहू "प्रकृति" #truecolors #Prakriti_ #deepliner #zindagi #love #SAD #poem #poetry ज़िन्दगी से शिकायत कैसी भावनाओं का कत्ल कर उन्हें कब्र में दफ्न करना
Yashpal singh gusain badal'
ज़िंदगी हसरतों को वक्त की आँधी निगल गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों जुगत किए उम्र-ए-दराज की । दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई । सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले । उसके ही हाथ कत्ल जिन्दगी निकल गई । आब-ए-हयात पी के भी न बच सका यहाँ । माटी का बना था सो माटी में मिल गई । नाज है किस बात का किसका गुरूर है । अच्छे-अच्छों की यहाँ हवा निकल गई । थामे थे जिसको भींच के दिल के करीब से । हाथों से वो प्यार की डोरी फिसल गई । "बादल" गलत उठे थे कदम राह-ए-शौक में, फिर सँभालते-संभालते जिन्दगी निकल गई।। ©Yashpal singh gusain badal' #retro ज़िंदगी हसरतों को वक्त की आँधी निगल गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों जुगत किए उम्र-ए-दराज की । दम साध के र