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Bebo
कौन सी नजर से अब देखू तुम्हे की तुम पराए लगने लगो..... तुम्हे अपना समझ के हम रोते बहोत है,!!! R.P,✍️*Bebo 21/12/2024 1.05 pm ©Bebo अनकहे शब्द
अनकहे शब्द
read moremani naman
Unsplash रद्दी अख़बार की मर चुकी ख़बरों के बीच बची-खुची ज़िद्दी और स्वाभिमानी टैग लाइन से बस किसी तरह दो शब्द झाड़ लाया हूँ; तुम हेडलाइन देखकर कन्फ्यूज़ न होना, क्योंकि, अतीत से लाए गए शब्द अपना वजूद खोकर धुंधला ही जाते हैं; बस किसी तरह अपने वाक्यों के बीच मेरे शब्द सहेजकर उन्हें ज़िंदा रख लेना। ©mani naman मेरे शब्द
मेरे शब्द
read moreMayuri Bhosale
White प्रश्नांचे शब्दकोडे......❓❓❓ बोल माझ्या मनातले पण सांगू का कोणाला? 🤫 प्रश्न बरेच भोवती पण सोडवू का कशाला? 😇 खेळ चाले विचारांचा पण आहे तरी का कोणासाठी? 🤨 उत्तर काही मिळेना पण ते पाहू तरी का कशासाठी?🤔 हो की नाही बुद्धीचा डाव सारा पण हा संपेल तरी का जाऊन पुढे कुठे? ♟️♟️ खरंच या जगी स्वतःपेक्षा पण हे प्रश्नच महत्वाचे असतात का कधी? 🙆🙋 सोडवत बसतो असले पण कारण नसताना प्रश्नांचे असे हे शब्दकोडे?🎲🌀 ©Mayuri Bhosale #प्रश्नांचे शब्द कोडे
#प्रश्नांचे शब्द कोडे
read moreMayuri Bhosale
प्रश्नांचे शब्दकोडे......❓❓ बोल माझ्या मनातले पण सांगू का कोणाला? 🤫 प्रश्न बरेच भोवती पण सोडवू का कशाला? 😇 खेळ चाले विचारांचा पण आहे तरी का कोणासाठी? 🤨 उत्तर काही मिळेना पण ते पाहू तरी का कशासाठी?🤔 हो की नाही बुद्धीचा डाव सारा पण हा संपेल तरी का जाऊन पुढे कुठे? ♟️♟️ खरंच या जगी स्वतःपेक्षा पण हे प्रश्नच महत्वाचे असतात का कधी? 🙆🙋 सोडवत बसतो असले पण कारण नसताना प्रश्नांचे असे हे शब्दकोडे?🎲🌀 ©Mayuri Bhosale #प्रश्नांचे शब्द कोडे
#प्रश्नांचे शब्द कोडे
read moreneelam jatov
White मर से गए हैं शब्द भी हमारे जैसे ©neelam jatov #sad_quotes शब्द
#sad_quotes शब्द
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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