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Rohan Roy
White बेशर्मी तो हमारे रोम रोम में होती है। शर्म का पर्दा तो केवल, नजरिये पर डाला जाता है। ताकि दूसरों की नजरों में, हमारा स्वाभिमान बना रहे। ©Rohan Roy शर्म का पर्दा तो केवल, नजरिये पर डाला जाता है | #RohanRoy | #dailymotivation | #jai_shree_ram | #inspirdaily | #rohanroymotivation |
SHOAIB STATUS
Chhotu Prasad
Shubhankar Dubey
"उम्मीद" जब टूटती है दिल का सितारा टूट जाता है आंखो से खूबसूरत नजारा टूट जाता है और "रुद्र"-ऐ-दिल पता नहीं किसका बना दिया ऐ ख़ुदा जैसे तैसे जुड़ता है फिर दोबारा टूट जाता है और कैसे इन फूलों के ज़ख्म पर मरहम लगाए हम जब भी उठाता हूं हजारा टूट जाता है बरकत भी मेरी दुआओं में नहीं तेरी बद्दुआओं में हुई पहले बराबर रहता है फिर हमारा टूट जाता है और जिंदा है एक शक्श मेरे अंदर आज भी ऐसा संभलता तो है फिर भी सारा का सारा टूट जाता है हज़ारा*- जिससे गमलों में पानी डाला जाता है . . . . Sahani Baleshwar #शुभांकर #अंदाज_ए_अल्फ़ाज़ #yqbaba #yqdidi #motivation #inspiration #sha
Akash Das
#NonVegetarians_Are_Killers कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही
Akash Das
#Never_Eat_Meat कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं। म
Diva
हर घुट् जब गले से नीचे उतरती है, यकिंन होता हैं खुद पर हो ना हो जिन्दगी चाय जैसी ही चलती है। #NojotoQuote #चाय हर घुट् जब गले से नीचे उतरती है, यकिंन होता हैं खुद पर हो ना हो जिन्दगी चाय जैसी ही चलती है। आधा कप पानी जलता है चायपत्ती घुल् जाती
Vikram Bunty
#Never_Eat_Meat 💠कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।
Rimpi chaube
पता नही अपनी जिद में और कितने दिल तोड़ेंगे ये समाज के ठेकेदार बचपन में सिखाते है प्रेम का पाठ सबको और जरूरत पर उसी को बांध देते है दायरों में कभी जात-पात,कभी अमीरी गरीबी और कभी अपनी झूठी शान की खातिर यही सब अंत में करना होता है तो बचपन से प्रेम का अंकुर क्यूँ डाला जाता है मन की जमीं में और जब वो अंकुर वृक्ष बन अपना विस्तार कर लेता है फिर क्यूँ काट दिया जाता है उस प्रेम वृक्ष की शाख को!! #समाज_के_ठेकेदार पता नही अपनी जिद में और कितने दिल तोड़ेंगे ये समाज के ठेकेदार बचपन में सिखाते है प्रेम का पाठ सबको और जरूरत पर उसी को बांध
Satya Prakash Upadhyay
खुशियों से भरा मन अचानक, खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है। जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें। जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा करते थें। जब इतवार को दूरदर्शन के आगे ,परिवार सहित बैठ जाते थें। नहीं कानाफूसी चुगलखोरी,सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चाई थी। जो रूठ गए दोस्त तो दो मिनट में कट्टी से मेल मिलाई थी। बड़ी सस्ती खुशियां थीं और, पार्टी में पसंदीदा मिठाई थी। अब के बच्चे क्या जाने कैसी बचपन हमने बिताई थी। खुशियों से भरा मन अचानक मायूस सा हो जाता है। जब माँ की लोरी की बजाए ,उन्हें मोबाइल दिखाया जाता है। जब खेलने वाली उम्र में बच्चों को, प्लेस्कूल में डाला जाता है। जब उनके संग बात न कर ,आफिस सा माहौल बनाया जाता है। जब एक बच्चे की नीति अपना कर,भाई बहन से दूर किया जाता है। खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है। जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें। जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा