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Ravendra
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Aditya Fogat
किसान की व्यथा! एक बारिश बस एक बारिश करता करता बड़का मरगा पर तु सदा अनाज न तिस्सो राख्यो सावन सुखों बितयो ओर भादव म तू फसल तीरा गो
Aditya Fogat
किसान की व्यथा! एक बारिश बस एक बारिश करता करता बड़का मरगा पर तु सदा अनाज न तिस्सो राख्यो सावन सुखों बितयो ओर भादव म तू फसल तीरा गो
Vikas Sharma Shivaaya'
गुरु रामस्वरूप अपने शिष्यों के साथ आश्रम के लिए भिक्षाटन पर निकले थे। वह अपने गुरुकुल में भोजन की व्यवस्था भिक्षा मांग कर ही किया करते थे।जब वह एक कस्बे से दूसरे कस्बे की ओर जा रहे थे, रास्ते में खेत-बधार मिलने लगे। किसी खेत में हरी-भरी फसल खड़ी तो कोई खेत बंजर नजर आ रहा था।ऐसे ही एक बंजर खेत पर किसान कुछ बुवाई करने के लिए खेत को जोत रहा था। वहीं पेड़ के नीचे उसने अपना सारा सामान, पोटली आदि रखा हुआ था। गुरु रामस्वरूप के शिष्यों में एक शिष्य शरारती था, वह शरारती स्वभाव के कारण किसान की रखी हुई पोटली उठा लाया।गुरु रामस्वरूप को जब ज्ञात हुआ कि उसके शिष्य ने कुछ शरारत किया है। गुरु ने शिष्य को समझाया –‘पुत्र इस प्रकार तुम उस गरीब किसान की पोटली चुरा कर उसे कष्ट दे रहे हो! यह कार्य तुम्हें शोभा नहीं देता। तुम उस किसान को दुखी करके अपने ईश्वर को दुखी करोगे। तुम्हें जो पैसे भिक्षा में मिले हैं उसे ले जाकर उसी स्थान पर पोटली सहित रख दो और फिर किसान का भाव देखो।’ शिष्य ने ऐसा ही किया -वह पोटली और पोटली के नीचे भिक्षा में मिले हुए पैसे रख आता है। गरीब किसान काफी दिनों से परेशान था, उसके घर में उसकी माता की तबीयत खराब थी दवाई के लिए कुछ प्रबंध नहीं हो पा रहा था। जब किसान खेत का काम निपटा कर बैठा और उसने अपनी पोटली उठाकर देखी तो उसके नीचे कुछ पैसे थे, उसने इधर-उधर देखा किंतु कोई नजर नहीं आया। किसान पैसे लेकर बहुत खुश हुआ और ऊपर दोनों हाथ करते हुए ईश्वर को धन्यवाद करता रहा। संभवत उसके माता के लिए दवाई का प्रबंध हो गया था। वह खुशी से आंसू बहाता और दोनों हाथ से पोंछता जाता। यह सभी दृश्य गुरु रामस्वरूप और उनके शिष्य छुप कर देख रहे थे। किसी भी व्यक्ति को दुखी करने के बजाए अगर खुश करने की कोशिश की जाए तो यह खुशियां दुगनी हो जाती है। विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 658 से 669 नाम 658 वीरः गति आदि से युक्त हैं 659 अनन्तः देश, काल, वस्तु, सर्वात्मा आदि से अपरिच्छिन्न 660 धनञ्जयः अर्जुन के रूप में जिन्होंने दिग्विजय के समय बहुत सा धन जीता था 661 ब्रह्मण्यः जो तप,वेद,ब्राह्मण और ज्ञान के हितकारी हैं 662 ब्रह्मकृत् तपादि के करने वाले हैं 663 ब्रह्मा ब्रह्मरूप से सबकी रचना करने वाले हैं 664 ब्रहम बड़े तथा बढ़ानेवाले हैं 665 ब्रह्मविवर्धनः तपादि को बढ़ाने वाले हैं 666 ब्रह्मविद् वेद तथा वेद के अर्थ को यथावत जानने वाले हैं 667 ब्राह्मणः ब्राह्मण रूप 668 ब्रह्मी ब्रह्म के शेषभूत जिनमे हैं 669 ब्रह्मज्ञः जो अपने आत्मभूत वेदों को जानते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' गुरु रामस्वरूप अपने शिष्यों के साथ आश्रम के लिए भिक्षाटन पर निकले थे। वह अपने गुरुकुल में भोजन की व्यवस्था भिक्षा मांग कर ही किया करते थे।जब