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Karan Yaduvanshi
👇👇 छल, श्राप, अपमान सुसज्जित कुरुक्षेत्र में शेर खड़ा था, अपनों से, अपनेआप से, अपनों के लिए बस कर्ण लड़ा था, त्रिलोकी भार को जिसने हिला दिया उसका बल लिखता हूँ. मैं बाण को ही कर्ण का पराक्रम लिखता हूँ, उस वीर की गाथा को मैं अनवरत लिखता हूँ. मैं कर्ण को ही महाभारत लिखता हूँ, वचनों से जो बाधित था सब श्रापों को लाचारी लिखता हूँ, कौरवों से होकर भी मैं कर्ण को सबपर भारी लिखता हूँ, उस दानवीर को मैं शूद्र लिखता हूँ. मैं कर्ण को ही रण में रुद्र लिखता हूँ, कृष्ण भी जिसके मित्र थे मैं उसे अजय, अद्वितीय लिखता हूँ, मैं कर्ण को मित्रता का प्रथक अर्थ लिखता हूँ, एक कौन्तेय को मैं सूतपुत्र लिखता हूँ, जो पाण्डवों का ज्येष्ठ था मैं उसे राधेय कर्ण लिखता हूँ..! ©Karan Yaduvanshi सूर्य पुत्र कर्ण 🌞🔥
Anand Mishra
जब निश्चित हो निज हार प्रबल, और मन कुंठित सा तकता हो, लर्जिश हो तन और साँसों में, और डग-मग भय सब सुनता हो, खलिश मची हो अंतर्मन, जीत खड़ी ,फुफकारे फन, आंख झुकीं,मन शायी हो, हर-पल थमते भाई हों, उठो वीर! तब सांस भरो, अब साथी मन का आएगा, सभी पुकारेंगे वीर उसे भी, पर वो कर्ण कहलायेगा । ©Anand Mishra कर्ण #कर्ण
Vivek Singh rajawat
"कर्ण" कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए पथ भ्रष्ट नही तुम संगत भ्रष्ट हो गए, न्याय से तोड़ नाता अन्याय के स्व हो गए कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए, कृष्ण ने भी माना तुमको तुम्हारे कौशल को जाना तुमको एक बार अकेले युद्ध विराम शक्ति जाना, परशुराम की शिक्षा को तुम भूल गए अनिष्ट को अपना स्वयं के अस्तित्व को भूल गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुम सा दानी न हुआ कोई उस द्वापर काल में तुम फँस गए मैत्री और छल प्रपंच के मायाजाल में, अंगदेश को वरदान मिला जो तुम अंगराज हो गए देवी कुन्ती को वरदान मिला तुम सूर्यपुत्र हो गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुमने क्षत्रिय हो कर भी शुद्र के जीवन जी लिया लघु जाति की वेदना तृष्णा को भी सह लिया, यू तो पांडव पाँच थे प्रथम छटे तुम हो गए विधि के खेल में तुम ममत्व से अछूते रह गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। ये काल ने कुछ ऐसी गति हैं बनाई अनीति देखो आज नीति पर हावी हो आई, कुरु सभा में द्रौपदी का चिर हरण किया जाए हे दानी तुम मौन क्यों ये रहस्य न समझ आए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुम दानी,वीर शास्त्रों से शस्त्र तक तुममे समाए फिर क्यों तुम अनीति के साथ हो आए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। विवेक सिंह राजावत कर्ण।