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Suthar Surya 18

White बचपन में पैसे नहीं थे, पर वो दिन बहुत अच्छे थे यार 🥺

©Suthar Surya 18 #Thinking #बचपन#viral

Br.Raj Gaurav

#Thinking बचपन

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White बचपन 

एक बचपन था बहुत शानदार बचपन कुछ बाध्यताओं के साथ वाला रंगीन बचपन!
अनेक रंग थे जो जिंदगी रौशन किये रहते थे!
उस बचपन का एक मौसम था ठंड का मौसम! तब इतनी सुख सुविधाएं नहीं थी! न बिजली न फोन न इतनी महत्वाकांक्षाएं हम और हमारा बचपन बहुत खुश था!
 किसी अलाव के चारों तरफ बैठ के किसी बुजुर्ग की  शीत बसंत और राजा रानी की कहानी सुन के!
कभी कभी तो कहानियां इतनी गंभीर होती थी कि हम रो देते थे!
और अब हक़ीक़त पर भी रोने का समय नही है!
ख़ैर .......
ज़िंदगी की इस रफ़्तार में अब ना वो ठंड है ना वो अलाव है और न ही वो बुज़ुर्ग!
अब सिवाय अफ़सोस के इस जवानी में कुछ बचा नहीं है!
बचपन की सुबह रोज़ तैयार होकर जल्दी स्कूल पहुंचने  के लिए जिन रास्तों पर दौड़ लगाते थे! 
आज वो रास्ते तरस गए होंगे हमारे पैरों की थपक सुनने को जैसे अब हम तरस रहे हैं उन रास्तों पर पैदल चलने को!
वो आम की डाली जिस पर ओला पाती खेल के हमने उसे जमीन से सटा दिया था!
बरसों से वो झुकी हुई डाली एकटक गांव की तरफ़ देख रही है!
उसकी आस को पता ही नही है कि आज का बचपन मोबाइल की स्क्रीन में डूब के असमय मर चुका है! 
और कल जो बचपन उसका साथी था वो कंधे पर बस्ता लटका के स्कूल की तरफ ऐसा दौड़ा कि फ़िर कभी वापस ही नही आया!
वो बचपन अब जवान हो चुका है! उस बचपन के पास अब हफ़्ते के दिन  और महीनों के मौसम को समझने का समय नही है!
जो बचपन सौमनस्य से भरा था उस बचपन की जवानी अब वैमनस्य की शिकार है!
ये सब आधी रात को लिखते हुए!
सुदर्शन फ़ाक़ीर की एक ग़ज़ल 
याद आ रही है!
ना मोहब्बत न दोस्ती के लिए 
वक्त रुकता नहीं किसी के लिए
वक्त के साथ साथ चलता रहे 
यही बेहतर है आदमी के लिए 
वक्त रुकता नही किसी के लिए

अलविदा बचपन!

©Br.Raj Gaurav #Thinking बचपन

Diya

🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰

©Diya #मासूम #नजर #बचपन#बचपन #diyakikalamse

usFAUJI

बचपन और मैं,🥰

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बचपन और मैं 🥰🥰

©usFAUJI बचपन और मैं,🥰

Tripurari Pandey

बचपन मतलब बेफिकर

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आधुनिक कवयित्री

बचपन की यादें......

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Sumit Kumar

बचपन की यादें..

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Amit Tiwari

Unsplash जवानी में कमाई के कई आयाम गढ़ डाले ....
फलसफे न जाने कितने हर शाम पढ़ डाले ...

शिद्दत से इंतजार है कि फिर से दिन वही आए..
हम सब्जी से बचायें चार पैसे और घर आए..

खनक उन चार पैसों की दोबारा मिल नहीं पाई..
खुद के लाखों रुपयों में वो खनक ही नहीं आई..

©Amit Tiwari #Book #बचपन 
#बचपन_के_वो_दिन

NOTHING

Avinash Jha

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha #संशय
#Mythology  #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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