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Sneh Prem Chand
काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं, और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष, अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।। दिल की कलम से ©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम #Hope
kanhaiya singh
“ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है, रुकने का नही..!” #ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है, रुकने का नही..!”
Ishika Agarwal
जान जाती है उसके जाने से, फिर भी खामोशियाँ नज़र आती है उसके आने से। ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है, रुकने का नही..!
Kavi Diptesh Tiwari
आज का ज्ञान 🇮🇳 *कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा* 🇮🇳 पनघट बेला में जो कोयल गीत सुनाया करती थी, भोर अभय में बुलबुल कलरव तान सुनाया करती थी, अब सत्ता के मदहोशी में कौओं की राग सुनाई देती है, और हिन्दू मुस्लिम में मज़हब वाली आग दिखाई देती है, क्या राजभवन के सिंघासन को सही गलत का ज्ञान नही? क्या सत्ताधारी राजमुकुट को मर्यादा का भान नही ? क्या सत्ता के मद में यूँ ही भारत मां से ऐंठेगा? क्या भारत मा के टुकड़े करने वाला नेता बन कर बैठेगा? जब महासमर में दुर्योधन को सत्ता भोग दिखाई देता है, और गरीबों के अश्रु में उज्वल भविष्य दिखाई देता है तब धर्म राज धर्म ज्ञान नही, गांडीव जरूरी होता है, और अधर्मी ,पापी का संहार जरूरी होता है, जब सूरज की भी किरणे अंधकार सी दिखने लगती है, नुक्कड़ में मानवता भी अमर्यादित होकर बिकने लगती है, तब मै कलम सिपाही ,राष्ट्रवाद की अलख जगाऊंगा, जब तक जागूँगा तब तक इंकलाब का नारा गाऊंगा, घाटी में लहरता चाँद सितारा ,मरता रोज तिरंगा है, नेहरू जी के एक गलती से भारत अब तक शर्मिंदा है, एक देश में दो प्रधान,दो संविधान कहाँ से हो सकते है, अरे मुफ्ती से पूछो क्या एक बच्चे के कई पिता हो सकते है, सत्ता लोभी नेताओं से मैं देश नही झुकने दूँगा, और हमारी भारत मा का सम्मान नही बिकने दूँगा, जब तक साँस चलेगी मेरी तब तक जंग लड़ूंगा, लेकिन कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा *कवि दिप्तेश तिवारी* कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा