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Shivkumar
White खट्टे मीठे पीले आम कितने हैं रसीले आम सभी फलों के राजा हैं सबसे ऊँची इनकी शान आई गर्मी लेकर आम सूझा ना कोई और काम आम तोड़ने की हुई तैयारी दौड़े बच्चे दिल को थाम बाग बगीचे भरे पड़े हैं लटके तरह-तरह के आम माली के नजरों से छुप कर निशाना लगाते गुलेल थाम जिसका निशाना पक्का होता मिलता उसको उसका ईनाम लगे पत्थर जो माली के सर पर सरपट भागे धड़ाम धड़ाम सबके दिलों की पसंद हैं यह सबके मन को ललचाते आम पल भर में चट कर जाते बच्चों को खूब लुभाते आम। ©Shivkumar #mango #आम #Nojoto खट्टे मीठे पीले आम कितने हैं रसीले आम सभी फलों के राजा हैं सबसे ऊँची इनकी #शान
Ramkishor Azad
कलम का निशाना तीर की तरह चलाए चलते ही सब जाग जाए, शब्दों की आवाज इतनी तेज हो कि लोग सुनते ही सब झुक जाए! सोच मिशाल की तरह कायम रहे चलने पर अपने मुकाम तक जाए,, मेहनत की चमक दूर दूर तक न रहे वक्त आने पर बादशाह आज़ाद बन जाए!! डीयर आर एस आज़ाद... ©Ramkishor Azad #अंबेडकरजयंतीकीहार्दिकबधाई #मेहनत #कलम #शब्दों #निशाना #शायरी #rsazad #viral #Trading #Love poonam Sonia Anand Brajraj Singh Sethi Ji Anupr
Anjali Singhal
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अगर आपकी बात, किसी को भी गोली की तरह लगती है, तो आपका निशाना बिल्कुल ठीक है।। ©N S Yadav GoldMine #sugarcandy {Bolo Ji Radhey Radhey} अगर आपकी बात, किसी को भी गोली की तरह लगती है, तो आपका निशाना बिल्कुल ठीक है।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Blue Moon ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२ मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं रास्ता दूँगा । खबर ही थी नहीं ये की निशाना आज भी हूँ मैं ।।३ न जाने क्यूँ कदम मेरे खिचें यूँ ही चले जाते । कोई बतला मुझे ये दे मिटा क्या आज भी हूँ मैं ।।४ जुदा होकर भी उनसे क्या कहूँ दिल की तमन्ना को दिया सा राह में ये दिल जलाता आज भी हूँ मैं ।।५ खिलौना वह समझकर जिस तरह मुझ से यहाँ खेलें । उन्हीं से यार अब रिश्ता निभाता आज भी हूँ मैं ।।६ सुना दो तुम प्रखर अब तो खबर उस बेवफ़ा की कुछ । यहाँ जिसके लिए आसूँ बहाता आज भी हूँ मैं ।।७ १६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । म