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Nagendra Dahayat
ना हारना जरूरी ना जीतना जरूरी जो रूठ गए ना उनको मना ना जरूरी यह जिंदगी है साहब बस इसे समझना जरूरी है ©nagendra dahayat ©nagendra dahayat जिंदगी का सारांश
Drjagriti
"क्षमा प्रार्थी" भी वही होगा जो वास्तविकता मैं "प्रायश्चित" कर रहा है अन्यथा "पाखंड" की तो विभिन्न "लीलाएं" हैं ©Drjagriti # प्रायश्चित
Sabir Khan
पछतावा का सही अर्थ प्रायश्चित है, प्रायश्चित के पश्चात मनुष्य नवजात हो जाता है। नवजात अर्थात् हर दोष से पवित्र,,, प्रायश्चित
Shravan Goud
आपको कामयाब होना है तो मंजिल के अलावा किसी पर भी ध्यान मत दो। फ़ालतू चीजों के लिए समय बिताना प्रायश्चित का कारण बनता है। प्रायश्चित का कारण नहीं बनना चाहिए।
bhishma pratap singh
एक दिवस संकेत नगर (काल्पनिक) नरेश यशमान सिंह(कल्पित) आखेट के लिए निकलेऔर राज्य की सीमाओं से पूर्व ही शेरनी का आखेट कर लौटने लगे, तभी उनकी दृष्टि शेरनी के बच्चे पर पड़ी। अपने दल बल को ठहरने का आदेश देकर नरेश उस बच्चे की ओर जाने लगे किन्तु भय से अपने प्राण बचाने के लिए वह बच्चा भागने लगा और अब वह अकेला ही नहीं था, उसके तीन और साथी भी वहां से भागने लगे। और नरेश ने जाल डलवाकर चारों बच्चों को पकड़वा कर सुरक्षित नगर के पास बगीचे में ले जाने का आदेश दे सीधे स्नान कर मन्दिर चले गए। आज उनका मन अत्यंत कुण्ठित और पीड़ा से ओतप्रोत था इसीलिए उन्होंने मन्दिर में परमात्मा से शेरनी को मारने की क्षमा याचना के साथ वचन लिया कि आज की घटना के उपरांत वे भविष्य में कोई आखेट नहीं करेंगे अपितु इन चारों शावकों के लालन-पालन का पूरा सहयोग भी करते रहेंगे। पुराने अपराधों के दण्ड का तो पता नहीं किन्तु हां! नरेश यशगान सिंह ने उन चारों शावकों की अत्यंत सुन्दर वयवस्था करवा दी और उनके भरण पोषण में कई सेवकों को लगा दिया। चारों शावक नरेश और सेवकों ही नहीं अपितु नगर के हर व्यक्ति को पहचान गए थे। अब वे केवल बाहरी व्यक्ति/अपरिचितों पर ही हमलावर होते जिससे नरेश अति प्रसन्न थे। हाँ! इसी बीच ईश्वर ने नरेश को दो पुत्र और दे दिए जिनका पालन पोषण भी उन्हीं के साथ होने लगा। समय व्यतीत होता जा रहा था। नरेश ने अपने दोनों राजकुमारों का नाम आकाश और गगन रखा तो वहीं बढ़ते चारों शेरनी के बच्चों जिनमें बड़ा शेर व शेष तीनों शेरनियां थीं के नाम क्रमशः राजा,प्रभा, कृपा और आभा रखा गया। समयानुसार उनकी सन्तानें बढ़ती गईं और अब चार से सात-पंद्रह-पच्चीस-पचास होते होते संख्या सौ को पार कर गयी। किन्तु अपने नगर के ही नहीं अपितु राज्य की समस्त प्रजा से वे परिचित थे, इसीलिए प्रजाजन जैसे उनके मित्रवत हो गए वहीं पड़ोसी नरेश की समस्त अनुपयुक्त गतिविधियां संकीर्ण होतीं चली गयीं। अतैव पड़ौसी नरेश ने इस नगर नरेश से अपने सम्बंध सुधारने में ही भलाई समझते हुए अपनी दोनों राजकुमारियों का विवाह इनके दोनों राजकुमारों से कर दिया और सभी जन सुख से जीवन यापन करने लगे। धन्यवाद। (शिक्षा- जीव हत्या पाप है और शत्रुता से मैत्री हजार गुना सुखद होती है।) ©bhishma pratap singh #राजा का प्रायश्चित#हिन्दी कहानी#समाज और संस्कृति#भीष्म प्रताप सिंह#September Creator#findsomeone
Pratibha Chaudhry (PC)
हम किसी अच्छे इंसान जितना अपमान करते है उतना ही उस नजर में जलील और उसकी जिंदगी से दूर भी होते जाते है और एक समय के बाद कड़वी यादों के सिवा कुछ पास नही होता और प्रायश्चित करने के लिए ना वो इंसान जिसका अपमान हर पल हुआ होता है ©Pratibha Chaudhry (PC) प्रायश्चित