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Vijay Vidrohi
हरियाणा हरियाणवी संस्कृति की धरा पर, खेतों में है खड़े किसान, मेहनत से जुटे दिन और रात हरियाणा की ये पहचान। उनके हाथों में हल, उनके दिल में सपने, सबका पेट भरे हैं अन्न से समझ के अपने महिलाएं घाघरा चोली पहने, सिर पर पललू, बेटे को यह प्यार से कहती मेरा कल्लू खेतों में भी साथ कमावै बणकै ढेठी ओलंपिक में मेडल लावे हरियाणा की बेटी उनके हाथों में सुई, उनके दिल में प्यार, गिद्दा खडवा घोड़ी नृत्य गाव गीत मल्हार। हरियाणवी संस्कृति एक सुंदर सी कहानी है, जिसमें मेहनत, संतोष,प्यार और मीठी बाणी। गर्व से उस फौजी बेटे पै जो राखे देश का मान यही है हरियाणवी संस्कृति की असली पहचान। जो हमें गर्व और सम्मान से भर देती है। कृपया बताएं कविता कैसी लगी ©Vijay Vidrohi हरियाणा #हरियाणा #my #new #poem poetry on love love poetry in hindi hindi poetry punjabi poetry poetry lovers
Schizology
My My head is like a pinball game Bouncing from side to side Jumping up and then down It takes me on an amusement ride My mind is like a race track Thoughts travel round n round Frequently hitting the barriers So often that I've lost count My brain feels like it sparks Ready to spontaneously combust At any moment an explosion Will leave me with just dust Thoughts like a jack in the box, Turn the handle and surprise At the point of no returning This is what thinking comprises There may be a meltdown My reactors will burst The confusion will leak Unless I can get it reversed ©Schizology My #poem✍🧡🧡💛 #Mind
My poem✍🧡🧡💛 #Mind
read moreWriter Mamta Ambedkar
गद्दारों के शहर में दिल की बात कहे भी तो, किससे कहे, यहां सब गद्दार हैं। चेहरे पर मुस्कान, दिल में खंजर, हर कोई छल-कपट का साकार है। बातों में मलहम, हाथों में नमक, दिखावटी अपनापन हर ओर है। दर्द पूछते हैं, सहला के, फिर घावों को चीरने का जोर है। यहां सच की आवाज़ दबा दी जाती, झूठ के सिक्के खनकते हैं। अपनों के बीच भी परायापन, दिलों में फासले पलते हैं। तो किससे कहें ये दिल की बात, कौन सुनेगा हमारी पुकार? इस अंधेरे में ढूंढ़ रहे रोशनी, जहां हर रिश्ता एक व्यापार। पर दिल है कि उम्मीद नहीं छोड़ता, शायद कहीं कोई अपना भी हो। जो मलहम भी लगाए, सहलाए, और नमक के घावों से बचाए। ©Writer Mamta Ambedkar #Childhood
Avinash Jha
वात्सल्य का स्पर्श जब मुस्काए किलकारी बन, भर दे घर आंगन की चहल-पहल। छोटे हाथों की छुअन से, झूम उठे सारा घर-आलय। नन्हें कदमों की वो आहट, जैसे सुबह का पहला किरण। माँ के आंचल में छुप जाए, पिता के कंधों पर वो सुमिरण। उनकी हँसी का संगीत सुन, दीवारें भी गुनगुनाने लगतीं। खिलौनों की मीठी बातें, हर कोना दर्पण बन जातीं। नटखट शैतानी में छिपा, जीवन का अनमोल ज्ञान। हर बिखरी चीज़ में झलकता, स्नेह का अनुपम सम्मान। माँ के हाथों से खाए निवाले, स्वाद बन जाते हैं अमृत। पिता की उँगली पकड़कर चले, हर सफर लगता है सरल। वो छोटे-छोटे सवाल, जैसे गूंजें नदियों के सुर। उनकी जिज्ञासा से सीखें, हर पल का अद्भुत मर्म। इस वात्सल्य की सुगंध से, महक उठे हर आशियाना। एक बच्चे की मासूमियत से, सजता है सारा जमाना। ©Avinash Jha #Childhood