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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सोरठा :- सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता । नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।। लियो मजा तुम खूब , सदा पक्की सड़को का । करना क्या है आज , पहाड़ो औ झरनों का ।। महल बने फिर चार , वृक्ष हो बिल्कुल छोटे । गेंदा चंपा छोड़ , वृक्ष सब लगते खोटे ।। हँसते घूंघट काढ , दिखे सारी बत्तीसी । फल कर्मो का आज, निकाले सबकी खीसी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सोरठा :- सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता । नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।।
Hina Kumari my Instagram ID @Rakesh radhika sarda
White श्री कृष्ण 🥰 गोविंद मुरारी ♥️ Uff तुम्हारी ये मुस्कान 💞 “ दिल तुमसे लगा बैठे हैं, प्रेम की राह पर सपने सजाएं बैठे है, हर किसी ने तोड़े है सपने हमारे, एक तू ही है कन्हैया, जिससे हर उम्मीद लगाए बैठे है…” श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी , हे नाथ नारायण वासुदेवा..!!😘😘❤️😌 ©Hina Kumari my Instagram ID @Rakesh radhika sarda #sad_shayari 🙏🙏जय श्री कृष्ण 🙏🙏 रंग तो तेरा श्याम है कान्हा तिरछे तेरे नैन, रूप सलोना है मोहन और बांके तेरे बैन...!! शंख चक्र वैजयंती माल
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन । आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।। देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन । मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।। रूप मोहिनी देखकर , ठहर गये दो नैन । लब बेचारे मौन थे , कह न सके दो बैन ।। जिनकी सुन तारीफ में , निकल न पाये बैन । कजरारे वह नैन अब , लूट रहें हैं चैन ।। इतना तो अब ध्यान रख , भोर नही ये रैन । झूठ बोलते आप हैं , बोल रहे दो नैन ।। अमृत कलश पिला दिए , तेरे ये दो नैन । झूम-रहा हूँ देख लो , पीकर अब दिन रैन ।। लाकर होठों पर हँसी , पीर छुपाये कौन । दो नैना यह देखकर , रह न सकेंगे मौन ।। दो नैना जो चार हो, खिले अधर मुस्कान धीरे-धीरे हो गया , देख हृदय का दान ।। ०४/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन । आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।। देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन । मन ये प्यासा रह गया ,
Himanshu Prajapati
हे भगवान मेहरारू भले करिया देह, लेकिन गढ़न तनी बढ़िया देह, नहीं त सुहागरात के दिन घूंघट उठवत हम डर जाब, सुहागरात से पहले ही मर जाब..! ©Himanshu Prajapati #boatclub हे भगवान मेहरारू भले करिया देह, लेकिन गढ़न तनी बढ़िया देह, नहीं त सुहागरात के दिन घूंघट उठवत हम डर जाब, सुहागरात से पहले ही मर ज
Himanshu Prajapati
थोड़ा सा उलझा थोड़ा सा बेचैन हूं, अपनी सही किस्मत की कहानी में बैन हूं, मुद्दतें लाख बुरा हो रहा है तो क्या हुआ इन छोटे-छोटे धक्कों से खुद को मिटा तो नहीं सकता, मेरे ऊपर भी है जिम्मेदारियां बहुत, चल रही है यूं ही जिंदगी रफ्ता रफ्ता मैं भी तो अपने मां-बाप की आंखों का सुकून हूं..! ©Himanshu Prajapati #bicycleride थोड़ा सा उलझा थोड़ा सा बेचैन हूं, अपनी सही किस्मत की कहानी में बैन हूं, मुद्दतें लाख बुरा हो रहा है तो क्या हुआ इन छोटे-छोटे धक
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