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Jyotirmayee Sarkar
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) हिंदी अनुवाद: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है। ©Jyotirmayee Sarkar भगवद गीता (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) #akela #भगवदगीता #geeta
Jyotirmayee Sarkar
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) अर्थात: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। ©Jyotirmayee Sarkar भगवद गीता।। (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) #phool #गीता #भगवदगीता #BhagvadGita #Motivational #sheekh #Slok
Bhanwar Singh
हेलो दोस्तो सभी को मेरा नमस्ते हम सब ने कई लोगों को उदास देखा है उनके लिए मेरा एक मैसेज है आप भगवद गीता पढ़िए और सुनिए शोख आपसे लाखों कोस दूर भागेगा ।। जय श्री राधे कृष्णा।। ©Bhanwar Singh भगवद गीता भंवर सिंह
Bhagwad Geeta Krishna
Bhagwad Geeta Krishna
Bhagwad Geeta Krishna
Bhagwad Geeta Krishna
teachershailesh
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्। दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।। भावार्थ:- मन, वाणी और शरीर किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्त:करण की उपरति अर्थात् चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूत प्राणियों में हेतुरहित दमा, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्भ आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव।। ©teachershailesh श्रीमद्भागवत गीता अध्याय-16,श्लोक-3.....#supersamvaad#geetagyan