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हिमांशु Kulshreshtha
Unsplash कोई आदत.. कोई बात.. या ख़ामोश सी मेरी खामोशी कभी तो.. कुछ तो.. तुम्हें भी याद आता होगा!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha कुछ तो..
कुछ तो..
read moreazad satyam
कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मायने समझता हूं, तभी तो दूरी न हो कभी दिलो के बीच इसलिए अंदर से मचल जाता हूं पर हां वक्त पर सम्भल जाता हूं 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 #ek_panchi_diwana_sa ©azad satyam कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मा
कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मा
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
White ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कतार अश्क, अलूदा चश्म से आलूदा कजरारी पलके.... वो कुछ बुने हुए ख्वाब कुछ गिले_शिकवे....?जो इब्न_आदम इल्म रखते हुए भी,औरत के अंतर्मन को जानबूझकर बेझिझक उसके द्वारा नजर अंदाज कर देना.... हां मैं लिखती हूं तरतीब से लफ्जों को पिरोकर, तमाम आलमी औरत के अंतर्मन को,उनके मन में चलते शोरगुल करते सांय सांय सन्नाटे को.... गर रही हयात तो मै बहुत कुछ लिखूंगी इन इब्न आदम पर भी .... #Shamawritesbebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता
©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता
read moreAnuj Ray
New Year 2024-25 रात सब के हिस्से में बराबर आए ये ज़रूरी तो नहीं, हर किसी के घर में चांद उतर आए ये ज़रूरी तो नहीं। ©Anuj Ray #ज़रूरी तो नहीं"
#ज़रूरी तो नहीं"
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White यूँ तो बहुत कुछ बदल गया है हमारे बीच बस तुम्हें चाहते रहने की चाहत नहीं गई ©हिमांशु Kulshreshtha यूँ तो..
यूँ तो..
read moreAkram Qumar
Unsplash यू आसान नहीं होता अलविदा कहना... पहली बार मिलने पर आंखों में उभरी चमक जब आंखों की उदासी में बदल जाती है, पहले स्पर्श की रूमानियत को सोचकर जब रूह छलनी होने लगती है, मामूली दर्द में भी जिसको ढूंढती हो नजरें, फिर जब वही सबसे बड़ी पीड़ा बन जाती है, जब अपनों के बीच भी जो सबसे अपना हो, वो गैरों के बीच भी सबसे ज्यादा गैर लगने लगता है, तब जाकर कहीं अलविदा कहने की हिम्मत आती है। कितना मुश्किल होता होगा, दर्द से सुकून और सुकून से दर्द का सफर... शायद तभी तो यूँ आसान नही होता अलविदा कहना... ©Akram Qumar #lovelife पहली बार मिलने पर आंखों में उभरी चमक जब आंखों की उदासी में बदल जाती है, पहले स्पर्श की रूमानियत को सोचकर जब रूह छलनी होने लगती है,
#lovelife पहली बार मिलने पर आंखों में उभरी चमक जब आंखों की उदासी में बदल जाती है, पहले स्पर्श की रूमानियत को सोचकर जब रूह छलनी होने लगती है,
read moreIG @kavi_neetesh
Unsplash 🙏🙏🙏🙏सुविचार 🙏🙏🙏🙏 हमें समय-समय पर आंसू बहाने और गिरते रहने के अवसर मिलते रहने चाहिए तभी तो पता चलेगा कि आंसू पौंछनेवाले या उठाने वाले हमारे अपने कितने लोग होते हैं। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ©IG @kavi_neetesh #leafbook प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स मोटिवेशनल कोट्स इन इंग्लिश मोटिवेशनल स्टेटस हिंदी मोटिवेशनल कोट्स समस
#leafbook प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स मोटिवेशनल कोट्स इन इंग्लिश मोटिवेशनल स्टेटस हिंदी मोटिवेशनल कोट्स समस
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
#Shayari nojoto चमन मे चारसु चिंगारियां है, जिधऱ देखो,उधर बर्बादियां है//१ नोंचता है क्यूं गुलों को बनके गुल्ची,तभी तो हों रहीं रुस्वाइया
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Unsplash चमन मे चारसु चिंगारियां है, जिधऱ देखो,उधर बर्बादियां है//१ नोंचता है क्यूं गुलों को बनके गुल्ची, तभी तो हों रहीं रुस्वाइयाँ है//२ कहीं पे रखके वो भुला मुहब्बत, वहीं से नफरतों की आगाजियां है//३ तुझे समझूँ,तुझे चाहूँ मुसलसल, यही तो इश्क़ की रुहानियां है//४ तेरे पहलु मे आके बैठ जाऊं, सनम दिल में तेरी रुमानियाँ है/५ न बन पाये जो तु मेरा कभी भी, मै समझूंगी तुझे दुश्वारियां है//६ लगी आतिश चमन मे बद-अम्न की, सुकून वालों को ही हैरानियां है//७ #Shamawtitesbebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #library #nojoto #shayari चमन मे चारसु चिंगारियां है, जिधऱ देखो,उधर बर्बादियां है//१ नोंचता है क्यूं गुलों को बनके गुल्ची,तभी तो हों रहीं