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Pratibha Singh
(तुम और मैं भाग -4) प्रेम का कोई झोंखा मेरी ओर आता भी है तो मैं डर जाता हूं तुम तो जानते हो प्रेम में टूटकर जुड़ने की सामर्थ्य तो मैंने तुम्हारे साथ ही खो दी थी तुम अपने पीछे मेरे लिए एक आकाश छोड़ गए वो आकाश जहाँ मुझे मुझ पर तीर फेंकती दुनियां से लड़ना था क्या करूँ मुझे हिम्मती और जाहिल बनना ही पड़ा समाज में जीवित रहने की खातिर अपना हिस्सा छीनना पड़ा और ज़ब छीनने लगा तो फिर खटकने लगा और खटकता ही रहता हूं तुम्हारी दुनियां को ज़ब हँसता हूं तो तुम्हारी दुनिया मुझे सह नहीं पाती रोता हूं तो तमाम सवाल करती है तुम्हारी तरह मेरा मन इतना मजबूत तो नहीं लेकिन बिना दोष पश्चाताप की आग में जलाकर तुमने बहुत मजबूत कर दिया मुझे अब अपने आंसू पोंछना सीख गया हूं मैं हंसी के पीछे गम छुपाना भी सीख गया हूं इसीलिए अब दुनियां से कट गया हूँ मैं फिर पुराने सपनें समेटने लगा हूं मैं वो सपनें जो तुम्हारे आने से पहले मेरे जीवन का हिस्सा थे शायद वही सुकून का कोई टुकड़ा मुझे मिल जाये भाग 4
Rakhi Raj
पंखुड़ी (भाग 4) काव्य को अब चीखों के साथ साथ मारपीट की आवाजें भी आने लगी,, पर अब उसकी सामने वाली खिड़की बंद रहती है | काव्य टकटकी लगाये देखती रहती है सामने वाली खिड़की की ओर, तभी पीछे से कोइ आकर उसकी आँखों को मूँद लेता है (काव्य अपने हाथों से उसकी आँखों को मूंदे हाथ को पहचानते हुए )-- वेद भैया !!!! कैसे पहचना??? "कैसे नी पेहचानूँगी बचपन में इन्ही हाथों से मेरे हाथ पकड़ आप मुझे लिखना सिखाते थे " हाँ हाँ पहले क, ख, ग पर अटकती थी ओर अब के से किस्से, कहानियाँ लिखने लगी काव्य मुस्कुराती हुई अपने वेद भैया के गले लग जाती है वेद पच्चीस साल का काव्य के मामा मामी का बेटा है सात साल पहले मामा मामी रोड एक्सीडेंट में मारे गये थे, फिर वेद अपनी बुआ के यही रहना लगा, अब वो नौकरी के लिये बैंगलोर रहता है "ये बताइये कितने दिनों के लिये आये है, पिछले बार की तरह बिना बताये वापस न चले जाना "(काव्य आँखों को छोटी करके मुँह बना कहती है ) अब यही रहूंगा कुछ दिन अकेला महसूस होता है वहाँ..मन करता है नौकरी छोड़ यही आ जाऊ "उम्र हो गयी भैया अब शादी करलो फिर न मन करेगा यहाँ आने का माँ से कहूंगी आपके लिये लड़की देखे कोइ जल्दी ही काव्य चिढ़ाते हुए पूछती है... कैसी लड़की चाहिए आपको? |||||||| 6 दिन बाद वो सामने वाली खिड़की खुली,, पंखुड़ी ने जैसे ही खिड़की खोली उसके हाथों की चूड़ी मे लगे शीशे की चमक वेद के आँखों पर पड़ी वेद की नजरें पड़ती है खिड़की के पास ख़डी पंखुड़ी पर उसे देखते ही वो कहता है "बिलकुल इसके जैसी " काव्य वेद की आँखों में वहीं चमक देखती है जो उस रोज पंखुड़ी की आँखों में थी... भैया.. भैया काव्य वेद के कानो के पास चुटकी बजाते हुए कहती है "ये वो रमेश याद है उसकी बीवी है. रमेश?? वेद ने चौंक के कहा" वो जुवारी ओर नशेड़ी " पर ये लड़की तो.... हाँ भैया 18साल की है सिर्फ.. अनाथ है ये (काव्य वेद आप जाओ खाना खा लो दोनों नीचे से आवाज आयी ) #पंखुड़ी (भाग 4)
Priya Anand jha
पर शायद तुम्हारे अनकहे इजहार को मैं समझ ना पाऊँ। तुम सिर्फ मेरे हो ऐसा तुम से कभी कह ना पाऊँ। शायद तुम से नजरे मिलाने में भी हिचकिचाओं । तुम्हारा बस हाथ पकडने में भी मैं सहम- सी जाऊं । इंतजार भाग-4
Dev Rishi
ऋतु के बाद फलों का रूकना डालों का सड़ना है मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है देते तरू इसलिए कि रेशो में मत कीट समायें रहे डालियां स्वस्थ और फिर नये नये फल आयें... ©Dev Rishi #रशमिरथी ,(भाग 4)
निम्मी की कलम से
वहां कौन है भाग 4 मैं अब सीधे बड़ी दीदी के कमरे में जाकर उनकी गोद में सर रखकर लेट गया। "दीदी क्या मैं आज आपके कमरे में सो सकता हूं?कितने साल बाद मिल रहा हूं आपसे।बहुत सारी बातें करनी है आज।" "चल नन्हे जियादा इमोशनल न कर।और पूछने की कि जरूरत,यहीं आराम कर।वैसे एक बात तो है तूं 40 का हो गया पर डरपोक आज भी बचपन जैसा ही है।मम्मी झूठ बोल रही सै लल्ला, कोई आवाज नी आती मनप्रीत के कमरे से। तूं डर ना।"बड़ी दीदी ने मजाकिया अंदाज में कहा तो मैं भी मुस्कुराकर बोला,"दीदी वैसे आप भी बिल्कुल नहीं बदली हो,भले एक बच्चे की नानी भी बन गई हो फिर भी कोई भी सिचुएशन हो मजाक करना नहीं भूलती।" "ए सब छोड़ लल्ला,ये बता मम्मी को हुआ के है,कोई दौरा पड़ा के?या कोई भूत देख ली?मैं बोली थी ना दिल्ली मेरठ हाईवे पर एक भूतनी घूमती रहती है,मत आना रात के वक्त।फिर भी तूं चल दिया मम्मी को लेकर!" "दीदी आपको पता है वो भूतनी और कोई नहीं अपनी मनप्रीत है?"मेरे इतना कहते दीदी लगी खिलखिलाकर हंसने,"नन्हे,पागल ना बन,अपनी मनप्रीत बहुत अच्छी थी,वो भूत नहीं बन सकती कभी।" ©निम्मी #horrorstories #वहांकौनहै भाग 4
Sukhdev Panday
गुमनाम मुहब्बत भाग....4 जब कभी कही बैठने की जगह नही मिलती थी तो वो वापस घर आ जाते और घर वालो से बता देते थे की आज गुरु जी के चाचा मर गए या गुरु जी की मम्मी का देहांत हो गया।इस तरह कभी वो शक के घेरे में भी नही आते थे।लेकिन पढ़ाई में इतना लगाव था की वो तीनो दिन भर साथ में बैठ कर पढ़ाई करते थे।बस उनको स्कूल जाना पसंद नही था वो भी इसलिए की वो नकल लिखना नहीं चाहते थे। ©Sukhdev Panday गुमनाम मुहब्बत भाग...4