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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। - दुष्यन्त कुमार a beautiful poem by Dusyant Kumar
Dil_ki_bate1201
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ समझ न इन को वस्त्र तू… जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ समझ न इन को वस्त्र तू… ये बेड़ियां पिघाल के बना ले इनको शस्त्र तू बना ले इनको शस्त्र तू तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल, तेरे वजूद की समय को भी तलाश है समय को भी तलाश है.. लेखक-:) हरिवंश राय बच्चन Such a beautiful poem😍🤗
Junaid Ashraf Thebo
A beautiful Poem written by Junaid Ashraf Sehraai
Sharbani Banerjee