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BBSINGH BAGHEL
ठोकरें खाकर न ठहरते रहिये। जिंदगी जंग है जूझते रहिये।। GOOOD MORNING जिंदगी जंग है.... कवि श्री ठाकुर दास जी
Alok Aman Pinku
कवि गोपाल दास "नीरज" जी को प्रथम पुण्यतिथि पर नमन
Ek villain
कवि बनारस दास का आत्म चरित्र का नाटक को हिंदी भाषा की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है हिंदी में यह प्रचलित रहा है कि एक दौर में बादशाहों के जीवन चरित्र लेखन की प्रथा तो थी मगर प्रजा के लिए अपना आत्म चरित्र लिखना एक अनोखी घटना थी यह भी माना जाता है कि बनारस रात के 3:00 मुगल बादशाह अकबर जहांगीर और शाहजहां का राज्य काल देखा जाए इस दौरान कवि का आत्म चरित्र लिखना और उससे साफ है कि कोली समाज में मान्यता दिलवाना असंभव की तरह बढ़ता जा रहा था इस अर्थ में बनारस दास का अर्ध नाग कथानक किसी भी भारतीय भाषा में लिखा गया पहला प्रमाणिक आत्मचरित्र माना जाता था विद्वान ज्ञान चंद्र जैन ने उसकी इस चरित्र को और बाद में उनकी अनेक कृतियों को आधार बनाकर कभी बनारसी दास की आत्मकथा जैसी संस्कृति का प्राण ने किया यह भी जानना योग्य था कि आज दिनांक तक को एक पहली बार हिंदी जगत में मान्यता दिलवाने के पीछे एक गुमनाम हिंदी सेवी स्वामी नाथूराम प्रेमी ने पहल की थी कि जो ग्रंथ रचनाकार कार्यालय मुंबई से संबंधित है उनके भी अनुरोध पर अर्धना तक प्रकाशित किया गया आजादी के हीरक जयंती वह ऐसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक आत्म चरित्र को पुनर पाठ की तरह देखना आधुनिक ग्रंथ भाषा का विकास का अध्ययन करने के साथ-साथ मुगल काल में शासक वर्ग का प्रचार वर्ग के बीच आपसी संवाद को भी देखना जैसा है यह भी उल्लेखनीय है कि कभी होने के साथ बनारसीदास एक व्यापारी भी थे जिनके परिवार में 3 पीढ़ियों से व्यापार जीविकोपार्जन का साधन था इसलिए आज मैं सहित सामाजिक सेवा कर्म में लिप्त एक आम इंसान की जिंदगी की गाथा का रोचक दस्तावेज आकृति जिस पर शुभम से ज्ञान चंद्र जैन टिप्पणियों पर हम आशा करते हैं ©Ek villain #कवि बनारसी दास का दर्पण की तरह बेबस आत्मचरित्र #Hope
Tara Chandra
हो स्कन्ध सहारा, हे माधव! एकान्त में हम, कामना यही, ध्वनि बंशी की, मीठी गूँजे, बैकुण्ठ यही, बैकुण्ठ यही... ©Tara Chandra Kandpal #राधाकृष्ण
Aaliya
मैं नहीं जानती द्वारकाधीश को मुझे तलाश उस कृष्ण की है जो सिर्फ राधा का था #राधाकृष्ण
beyond infinity खुद से खुद तक का सफर
प्यास दरश की अंखियन में है , मन के भीतर टोह , प्रीत तो बस प्रियतम से है , जग से कैसा मोह ।। #राधाकृष्ण