यूं तो हवा,पानी,आका,शकनी सब कुछ था मै,
लेकिन मुझे मेरा फकत मिट्टी होना पसंद आया।
मेरे नाम में जो न् था उस बढ़ा ना होने दिया मैंने,
मुझे वो स पे उसका छोटी सी बिंदी होना पसंद आया। जय ओझा
जय ओझा
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Durgakant Ojha
इंसान हूं इंसान की तरह बोलता हूं
कौन कितने पानी में है सबको तोलता हूं। #ओझा जी