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Neelam Modanwal
एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती वह जब भी घर से निकलती है अपने साथ घर की पूरी खतौनी लेकर निकलती है अचानक उसे याद आता है गैस का जलना दरवाज़े का खुला रहना नल का टपकना और दूध का दहकना एक-एक कर वह पूछती है प्रेस तो बंद कर दिया था न! आँगन का दरवाज़ा तो लगा दिया था न! किचेन का सीधा वाला नल बंद करना तो नहीं भूली! अरे! हाँ! वो सब्ज़ी वह मँहगी हरी पत्तियों वाली सब्ज़ी जो अभी कल ही तो लाई थी सटटी से प्लास्टिक से निकाल दिया था न! हाँ, हाँ अरे सब तो ठीक है आपको ध्यान है आलमारी लाक करना तो नहीं भूली अभी कल की ही तो बात है महीनों को बचाए पैसे से नाक की कील ख़रीदी थी । इस तरह वह बार-बार याद करती और परेशान होती है कि दूध वाले को मना करना भूल गई कि बरतन वाली से कहना भूल गई कि उसे कल नहीं आना था कि पड़ोसिन को बता ही देना था कि कभी कभी मेरे घर को भी झाँक लिया करतीं । इस तरह एक स्त्री निकलती है घर से जैसे निकलना ही उसका होना है घर में.... 💯💯✍️✍️❣️❣️ ©Neelam Modanwal एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती वह जब भी घर से निकलती है अपने साथ घर की पूरी खतौनी लेकर निकलती है अचानक उसे याद आता है गैस का जलन
Pushpvritiya
बच्चों के स्कूली दाखिला पत्र में व्यवसाय संबंधी विवरणी माता पिता दोनो की मांगी गई...... माता के व्यवसाय में "गृहस्वामिनी" (हाउसवाइफ) ( गृह की अधिष्ठात्री) उल्लेखित किया गर्व से....... अब बारी आई अर्निंग की..कमाई की..... पास खड़े भाई साहब ने कहा..... "ज़ीरो लिख दीजिए"..... भौंहों में एक सिकुड़न.... मस्तिष्क में एक सोच........ और एक मंद मुस्कुराहट के साथ मैंने ज़ीरो लिखा............. वैसे गृहस्वामिनी "पदनाम" तो अच्छा है... किन्तु मानदेय....शून्य... कोई अतिरिक्त भत्ता नही............ न कोई लीव...... और न ही इंक्रीमेंट............ गैस की कीमतें दिन पर दिन गगनचुंबी ही क्यों न हो......... राशन दूध के पैकेटों में एमआरपी की उछाल निफ्टी सेंसेक्स को भी क्यूं न मात दे रही हो....... मासिक इंक्रीमेंट बमुश्किल ही है........ फिर भी तीस दिनों का अंक गणित सटीक बैठा लेती है....... है न 😊 ©Pushpvritiya बच्चों के स्कूली दाखिला पत्र में व्यवसाय संबंधी विवरणी माता पिता दोनो की मांगी गई...... माता के व्यवसाय में "गृहस्वामिनी" (हाउसवाइफ) ( गृह क
Rishika Srivastava "Rishnit"
Moti Singh
Das Sumit Malhotra Sheetal
शीर्षक:- आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि। जब भी आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि जब होती, गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को परेशानी होती। कभी रसोई गैस सिलेंडर के दाम सरकार बढ़ाती, कभी पेट्रोल और डीजल के दाम सरकार बढ़ाती। लोगों के लिए दो वक़्त की रोजीरोटी कमाना मुश्किल, किराने का सबसे ज़रूरी सामान भी खरीदना मुश्किल। आजीविका की वस्तुओं पर तो हम सभी निर्भर करते, आटा, दालें व खाद्य तेल पर तो हम सभी निर्भर करते। आजीविका की वस्तुओं के बिना जीना सबसे मुश्किल है, कभी प्याज़ तो कभी टमाटर भी महंगा सरकार करती है। सरकार देश का बजट नियत्रंण में करने का प्रयास करती, भरसक प्रयासों के बावजूद मंहगाई बढ़ती सदा ही जाती। ©Das Sumit Malhotra Sheetal शीर्षक:- आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि। जब भी आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि जब होती, गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को परेशानी होती। कभी रस
SumitGaurav2005
Motivational indar jeet group