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दिव्यश्वेत
चाहिए थे मुझे कुछ काले मोती गुजर रही थी जहा से मैंने देखा ,छोटी सी लड़की फुटपाथ पर बेच रही थी रंग-बिरंगे मोती मैं बोली बिटिया दे दो मुझे कुछ काले मोती गुस्से से बोली वह, जाओ नहीं बेचती मैं काले मोती मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा क्यों नहीं बेचती हो तुम काले मोती बोली एक दिन मेरे पापा रात में पीकर आए थे वैसे तो रोज पीते थे , पर उस दिन कुछ ज्यादा पी कर आए थे माँ ने तो बस इतना ही बोला था इतना क्यों पीते हो बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा खींच लिया था उन्होंने मांँ का मंगलसूत्र बिखर गए थे सारे काले मोती मेरी सहमी आंखों ने देखा यह भयानक नजारा। दूजे दिन मेरे पिता ने दूजा ब्याह रचा डाला। दूसरी औरत के गले में थे अब काले मोती। छोड़ आई मैं अपना घर अपना गांव अब बेचती हूंँ, रंग-बिरंगे मोती पर नहीं बेचूंगी कभी काले मोती मैंने गुड़िया से खरीद लिये सारे मोती उसके लबों पर हल्की सी मुस्कान आई थी पर उस रात मुझे नींद नहीं आई थी। चाहिए थे मुझे कुछ काले मोती गुजर रही थी जहा से मैंने देखा ,छोटी सी लड़की फुटपाथ पर बेच रही थी रंग-बिरंगे मोती मैं बोली बिटिया दे दो मुझे
joshi joshi diljala
मां फूल बेचती है मेरी हमारी भूख के लिए कादिर| मैं जमीन पर बैठकर दिलजले मुकद्दर लिखती ,हूं| ©Aanshi Digital photo Film studio #मां फूल बेचती है मेरी हमारी भूख के लिए कादिर| मैं जमीन पर बैठकर दिलजले मुकद्दर लिखती ,हूं|
Vaishnav Singh Kshatriye
Harshita Dawar
मैं जज़्बात हूं ,जो लिखती बेलिहाज़ हूं मैं कविता हूं, जो लिखती बेतहाशा हूं मैं स्याही हूं, जो लिखती फरमान हूं मैं कलम हूं, जो लिखती बेबाक हूं मैं कौन हूं, हूं कौन मैं सिर्फ़ एहसास हूं ज़िंदा हूं सास हूं आज हूं कल तक साथ हूं? जिंदगी हूं, जीती हूं, कहती हूं ,खामोश हूं चीख हूं, सीख हूं , गुंजल हूं, साफ़ हूं रंग हूं , तंग हूं, बेराग हूं , बे रंग हूं चुप हूं, सुख हूं, भाग्य हूं, भोगी हूं कल हूं, आज हूं, कल हूं? लाश हूं, विरह हूं, अग्नि हूं, राख हूं जीवन हूं नाम हूं कल बस लाश हूं कल बस लाश हूं...... मैं जज़्बात हूं ,जो लिखती बेलिहाज़ हूं मैं कविता हूं, जो लिखती बेतहाशा हूं मैं स्याही हूं, जो लिखती फरमान हूं मैं कलम हूं, जो लिखती बेबाक
M. Vats Maratha
मैं शक्ति हूं! (Read in caption) मैं शक्ति हूं..! मैं कर्म हूं, मैं फल हूं, मैं अग्नि हूं, मैं जल हूं। मैं आज हूं, मैं कल हूं, मैं निष्कपट हूं मैं निश्छल हूं! मैं व्यक्ति
Vishal Singh Rajput
उम्मीद हूं,विश्वास हूं एक नया आकाश हूं, विधि हूं ,विधान हूं स्वयं का संविधान हूं उम्मीद हूं,विश्वास हूं एक नया आकाश हूं, विधि हूं ,विधान हूं स्वयं का संविधान हूं
♥️heaRtbeAt♥️
आईने बेचती थी, तो आता ना था कोई, रखने लगी मुखौटे जबसे, फुर्सत ही नही रही। #heaRtbeAt