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Zoga Bhagsariya

#Women जिस तरह बांस से बांस टकराता है , और पूरा जंगल जल जाता है , इसी तरह वो भी जल जायेंगे जो , सच्चाई की दुश्मन हैं ।। काफ़िर है , तो करे

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जिस तरह बांस से बांस टकराता है ,
और पूरा जंगल जल जाता है ,
इसी तरह वो भी जल जायेंगे जो ,
सच्चाई की दुश्मन हैं ।।

काफ़िर है , तो करे तेग पर भरोसा ,
मोमिन है , तो बे तेग भी लड़ता है सिपाही ।।
! अल्लामा इक़बाल।।

राम भरोसे नैया मोरी ,
टूटी भी , लगे है पार,
राम है मोरा खेवट ,
ऊ आप है धक्का देवत ,
मैं बन गया उसका सेवक,
ऊ होते, मरा चिंता न रेवत ,
चिंता विंता दूर भग जावत है ,
टूटी भी , पार लग जावत है ।।
जोगा को , कछु न आवत है ,
जोगा , तो बस कलम उठावत है ,
अपने आप , ग़ज़ल बन जावत है ।।

©Zoga Bhagsariya #Women जिस तरह बांस से बांस टकराता है ,
और पूरा जंगल जल जाता है ,
इसी तरह वो भी जल जायेंगे जो ,
सच्चाई की दुश्मन हैं ।।

काफ़िर है , तो करे

CalmKazi

     #कागज़कीनाव #नाव #मेरीनाव #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #कविता #हिंदी #बारिश #खेल #बचपन #नावचली #यादें  

Full Poetry As Below -

कागज़ की न

Ravendra

अब गांव में ही मिलेगी कॉमन सर्विस सेंटर की सुविधा  बहराइच। विकासखंड नवाबगंज के ब्लॉक सभागार में विकासखंड के समस्त पंचायत सहायकों का एकदिवसी #न्यूज़

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रजनीश "स्वच्छंद"

सच दुनिया का। किसके सर सजता मोर पंख, किन रुधिरों में बहता बिछु डंक। विष पीए बने जो नीलकंठ, गिनती के बचे हैं ऐसे चंद। करुणा अभिनय का हिस्सा #Poetry #Truth #kavita

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सच दुनिया का।

किसके सर सजता मोर पंख,
किन रुधिरों में बहता बिछु डंक।
विष पीए बने जो नीलकंठ,
गिनती के बचे हैं ऐसे चंद।
करुणा अभिनय का हिस्सा है,
विनय तो बस एक किस्सा है।
आंखों से आंसू कब बहते,
बस अपनी ताक में सब रहते।
मंदिर मस्जिद का ढोंग हुआ,
भगवन भी बहरा गोंग हुआ।
तलवारों की धार अनोखी,
लोर है इसने कितनी सोखी।
वीरान पड़ी थी अपनी बस्ती,
बिन पतवार चली थी कश्ती।
खेवट रस्ता जोह रहा था,
आगे जो उसके मोह रहा था।
पथभ्रष्टा राह से विचलित था,
जो स्वार्थ लहु में विचरित था।
चालक भी रस्ता छोड़ चले थे,
पथ भी अपना मोड़ चले थे।
घनघोर घटाएं तब थीं छायीं,
मेरे आगे चलतीं परछायीं।
मैं रौशन कब हो पाया,
समय के पीछे दौड़ लगाया।
आज मैं गुमसुम होता हूँ,
बिन आंसू के रोता हूँ।
क्या सुनोगे, क्या लिख जाऊं,
बन कविता मैं अब बिक जाऊं।
सच से ही किनारा करना है,
बिना मौत ही मरना है।
मन मे छाई है कातरता,
शब्द डूब स्याही है मरता।
हर रात मैं सपने बुनता हूँ,
जाग सुबह सर धुनता हूँ।
वो सुबह कभी तो आएगी,
रंग कलम ये लाएगी।
सच लिख मैं शर्माता हूँ,
शब्दों में ही भरमाता हूँ।
कहाँ शुरू हो कहाँ हो अंत,
सच के रूप हुए जो अनन्त।
दिकभ्रमिय हुआ लिख जाता हूँ,
सिरहाने दबा कलम टिक जाता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" सच दुनिया का।

किसके सर सजता मोर पंख,
किन रुधिरों में बहता बिछु डंक।
विष पीए बने जो नीलकंठ,
गिनती के बचे हैं ऐसे चंद।
करुणा अभिनय का हिस्सा

Neelam Modanwal

एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती वह जब भी घर से निकलती है अपने साथ घर की पूरी खतौनी लेकर निकलती है अचानक उसे याद आता है गैस का जलन #ज़िन्दगी

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