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Mohan Sardarshahari
White ज्योतिषी बन हाथ देखना वह तो एक बहाना था कइयों को जलाना था बनाना एक फ़साना था गुड़ देख मक्खी की तरह मुझे भी हाथ चिपकाना था सहेलियों के कहकहों के बीच तेरा वह नजाकत से हाथ छुड़ाना भरता हुआ मेरा जिंदगी भर का रोमांस का नायाब खजाना था।। ©Mohan Sardarshahari # नायाब खजाना
# नायाब खजाना
read moreAnuj Ray
White ऐसा लगता है दिसंबर" फिर से पिछली बार की भांति, उतर आया गगन से, इस बार भी, चूमने धरती का माथा स्वर्ग से अंबर। सर्द बाहों में समाने ,आ गई वसुधा भी आँखें मूंदकर , बर्फ़ की चादर में लेटा है कोई, ऐसा लगता है दिसंबर। ©Anuj Ray # ऐसा लगता है दिसंबर"
# ऐसा लगता है दिसंबर"
read moreRAMLALIT NIRALA
गरिबी एक ऐसी बीमारी है साहैब जिसे ठीक होने के लिये डाक्टर या हाकिम कि जरूरत नहीं पैसो की होती है ©RAMLALIT NIRALA पैसा एक ऐसा दवा है मेहनत के बाद असर करती है
पैसा एक ऐसा दवा है मेहनत के बाद असर करती है
read moreMonu Saini
न समझदार हूं और न ही बनना चाहता हूं टेंशन से लबालब जिंदगी छोड़ ऐ मेरे मालिक में तो बचपन में ही जीना चाहता हूं। ©Monu Saini बचपन# समझदार
बचपन# समझदार
read moreDr.Meet (मीत)
White वो बचपन कितना अच्छा था प्यार हमारा सच्चा था धोखा दगाकुछ ना जाने क्यों कि तब में बच्चा था ©डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.) wo बचपन
wo बचपन
read moreRakesh Songara
बचपन की यादें किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,, वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन, बेवजह क्यूँ याद आ गए,,, वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,, टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,, माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,, वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,, वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,, मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,, अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं क्यों याद आ गए,,, किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,, सावन के झूलों में घण्टों लटकना,, वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,, फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे, वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,, था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम, अब तो हर सांस पे लगता है राशन,, चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,, किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,, राकेश सोनगरा, सरदारशहर ©Rakesh Songara #बचपन