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Srinivas
White जीत के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए जीतो। ©Srinivas #love_shayari जीत के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए जीतो।
#love_shayari जीत के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए जीतो। #शायरी
read moreGhanshyam Ratre
White आषाढ़ के महिना है घन अमरिया गरज -गरज कर बरस रहें हैं पानी। किसानों के दिन आये है खेत खलिहानों को कर रहें हैं हरियाली।। ©Ghanshyam Ratre किसानों के लिए
किसानों के लिए #Life
read moreankit Yadav
White तेरी अदा गजब ढा रही है, तेरे रूठना की अदा दिल को जला रही है, मान जाओ अब न तड़पाओ, तेरी खामोशी मुझे तड़पा रही है। प्यार तुझसे बेपनाह है, मेरा दिल बेगुनाह है, मैंने तुझे नहीं सताया है, तेरा रूठना बेवजह है। ©ankit Yadav अपने प्यार के लिए
अपने प्यार के लिए #शायरी
read moreAkash
White सबसे खुशकिस्मत है वह इंसान, जिसके पास है पिता के प्यार की बेशुमार दौलत। पिता के लिए एक लाइक बनता है ©Akash #fathers_day पिता के लिए
#fathers_day पिता के लिए #शायरी
read moreRekha Singh
White कुछ ऐसे लोग जो नेटवर्क मार्केटिंग टीम के साथ काम करके अपनी और टीम की उन्नति कर सकें ऐसे लोग मैसेज करें forever living products joining के लिए मैसेज कर सकते हैं ©Rekha Singh #sad_shayari काम के लिए
#sad_shayari काम के लिए #विचार
read moreAnuj Ray
पहली नौकरी " पहली पहली नौकरी ,मिलते ही मुंबई में, लाइन लग जाती थी ,शादी के लिए छोकरी। पहले के लोग मुंबई ,जाते ही थे इसलिए, मुफ़्त में मिलती थी वहां, नौकरी और छोकरी। दो सौ की तनख्वाह में, कर लेते गुजर बसर, छोटी सी खोली में, घर बसा रहते थे डोंगरी। फिल्मों की सी ज़िन्दगी, फिल्मी लव स्टोरी, जाने का गम नहीं ,तू नहीं तेरी जगह दूसरी। ©Anuj Ray # पहली नौकरी "
# पहली नौकरी " #कविता
read moreDilip Kumar
White 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य का शरीर मिलता है कृपया इसे सरकारी जॉब की तैयारी में बर्बाद ना करें आगे आपकी मर्जी ...…............................... #kumardil143@gmqil.com ......................................................... ©Dilip Kumar #Sad_shayri सरकारी नौकरी
#Sad_shayri सरकारी नौकरी #मोटिवेशनल #Kumardil143
read moreरिपुदमन झा 'पिनाकी'
अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है। हुकम हाकिमों का बजाते रहो बस- यहांँ ज़िन्दगी हर घड़ी इक क़ज़ा है। दवाबों तनावों की बोझिल फ़ज़ा है। बिना पाप के भोगता नित सज़ा है। सवालों जवाबों से परहेज़ कर चल- यहाँ कोई सुनता नहीं इल्तिज़ा है। रहो जब तलक भी किसी नौकरी में। न कुछ और सोचो कभी ज़िन्दगी में। भुला दो सभी रिश्ते नाते जरूरत- लगा दो अरे आग अपनी ख़ुशी में। नियम हाकिमों के नए रोज बनते। कि साहब यहां ख़ुद ही उलझन में रहते। करें गलतियांँ हम तो सुनते हैं बातें - मगर इनकी ग़लती मुनासिब ही रहते। करो हर घड़ी सबकी तीमारदारी। जताए बिना अपनी कोई लचारी। न छुट्टी, न अर्जी, न आराम कुछ दिन- लगाए रखो नौकरी की बिमारी। ज़हन में ख़याल इसका ही जा-ब-ज़ा हो। अमल हुक़म हो चाहे बेजा बजा हो। चलेगी नहीं हुक्म उदूली एक भी - कि इसमें तुम्हारी न बेशक रज़ा हो। पड़ो चाहे बीमार या मर ही जाओ। मगर नौकरी अपनी पहले बचाओ। न जो कर सको तो अभी बात सुन लो- उठाओ ये झोला तुरत घर को जाओ। कभी कुछ न सोचो सिवा नौकरी के। नहीं तुम हो कुछ भी बिना नौकरी के। चलाता है घर बार यह नौकरी ही - करो रात - दिन हक़ अदा नौकरी के। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #नौकरी
ABRAR
चाह कर कौन छोड़ता है घर अपना हम मुहाजिर हैं इक नौकरी के लिए ©ABRAR चाह कर कौन छोड़ता है घर अपना हम मुहाजिर हैं इक नौकरी के लिए - अबरार Reeda
चाह कर कौन छोड़ता है घर अपना हम मुहाजिर हैं इक नौकरी के लिए - अबरार Reeda #Shayari
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